वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

हमारी संस्कृति का संरक्षण

अपनी संस्कृति का संरक्षण करना हमारा अधिकार भी है और हमारा कर्तव्य भी । जीवन जीने की हमारी विशिष्ट शैली, हमारे भोजन का वैविध्य, हमारी भाषायें, संगीत तथा धर्म हमको एक राष्ट्र के रूप में संगठित व परिभाषित करते हैं । हमारी संस्कृति से हमें वे अनूठी निधियाँ व उत्पाद मिलते हैं जिन्हें हम निर्यात कर सकते हैं, तथा ऐसे अनूठे अनुभव, भोजन व पेय मिलते हैं जिनके बल पर हम पर्यटन को आकर्षित कर सकते हैं । हमारी संस्कृति  हमको वह सुख-संतुष्टि प्रदान करती है जो सुख-संतुष्टि किसी को अपने घर में ही मिल सकती है, और कहीं नहीं ।

हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा होगी और भारत के सभी नागरिकों के लिये अच्छी तरह से हिन्दी पढ़ना-लिखना व बोलना ज़रूरी होगा, तथा सभी कामकाज व व्यापार आदि में हिन्दी का ही प्रयोग होगा ताकि अनुवाद के कारण होनेवाली तमाम गलतियों व दिक्कतों से बचा जा सके ।

हमारे देश में प्रवासियों का आना निषिद्ध होगा । अपवाद स्वरूप सिर्फ़ उन प्रवासियों को ही स्वीकार किया जायेगा जो विशिष्ट योग्यता रखते हों, विशेषज्ञ हों, या जो प्रवासी ऐसा धन हमारे देश में ला सकें जिस धन की हमें कुछ खास परियोजनाओं को पूरा करने के लिये आवश्यकता पड़ रही हो । विशेषज्ञों से उनके कौशल सीख कर हम अपना खुद का कौशल व अपनी योग्यता को बढ़ा सकेंगे । धनी प्रवासियों के धन से हमारी परियोजनायें पूर्ण होंगी । इन दोनों ही माध्यमों के द्वारा भविष्य में हमें पूर्णत: आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मदद मिलेगी ।

हमारी संस्कृति का संरक्षण
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हमारी संस्कृति का संरक्षण

अपनी संस्कृति का संरक्षण करना हमारा अधिकार भी है और हमारा कर्तव्य भी । जीवन जीने की हमारी विशिष्ट शैली, हमारे भोजन का वैविध्य, हमारी भाषायें, संगीत तथा धर्म हमको एक राष्ट्र के रूप में संगठित व परिभाषित करते हैं । हमारी संस्कृति से हमें वे अनूठी निधियाँ व उत्पाद मिलते हैं जिन्हें हम निर्यात कर सकते हैं, तथा ऐसे अनूठे अनुभव, भोजन व पेय मिलते हैं जिनके बल पर हम पर्यटन को आकर्षित कर सकते हैं । हमारी संस्कृति  हमको वह सुख-संतुष्टि प्रदान करती है जो सुख-संतुष्टि किसी को अपने घर में ही मिल सकती है, और कहीं नहीं ।

हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा होगी और भारत के सभी नागरिकों के लिये अच्छी तरह से हिन्दी पढ़ना-लिखना व बोलना ज़रूरी होगा, तथा सभी कामकाज व व्यापार आदि में हिन्दी का ही प्रयोग होगा ताकि अनुवाद के कारण होनेवाली तमाम गलतियों व दिक्कतों से बचा जा सके ।

हमारे देश में प्रवासियों का आना निषिद्ध होगा । अपवाद स्वरूप सिर्फ़ उन प्रवासियों को ही स्वीकार किया जायेगा जो विशिष्ट योग्यता रखते हों, विशेषज्ञ हों, या जो प्रवासी ऐसा धन हमारे देश में ला सकें जिस धन की हमें कुछ खास परियोजनाओं को पूरा करने के लिये आवश्यकता पड़ रही हो । विशेषज्ञों से उनके कौशल सीख कर हम अपना खुद का कौशल व अपनी योग्यता को बढ़ा सकेंगे । धनी प्रवासियों के धन से हमारी परियोजनायें पूर्ण होंगी । इन दोनों ही माध्यमों के द्वारा भविष्य में हमें पूर्णत: आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मदद मिलेगी ।

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अपनी संस्कृति का संरक्षण करना हमारा अधिकार भी है और हमारा कर्तव्य भी । जीवन जीने की हमारी विशिष्ट शैली, हमारे भोजन का वैविध्य, हमारी भाषायें, संगीत तथा धर्म हमको एक राष्ट्र के रूप में संगठित व परिभाषित करते हैं । हमारी संस्कृति से हमें वे अनूठी निधियाँ व उत्पाद मिलते हैं जिन्हें हम निर्यात कर सकते हैं, तथा ऐसे अनूठे अनुभव, भोजन व पेय मिलते हैं जिनके बल पर हम पर्यटन को आकर्षित कर सकते हैं । हमारी संस्कृति  हमको वह सुख-संतुष्टि प्रदान करती है जो सुख-संतुष्टि किसी को अपने घर में ही मिल सकती है, और कहीं नहीं ।

हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा होगी और भारत के सभी नागरिकों के लिये अच्छी तरह से हिन्दी पढ़ना-लिखना व बोलना ज़रूरी होगा, तथा सभी कामकाज व व्यापार आदि में हिन्दी का ही प्रयोग होगा ताकि अनुवाद के कारण होनेवाली तमाम गलतियों व दिक्कतों से बचा जा सके ।

हमारे देश में प्रवासियों का आना निषिद्ध होगा । अपवाद स्वरूप सिर्फ़ उन प्रवासियों को ही स्वीकार किया जायेगा जो विशिष्ट योग्यता रखते हों, विशेषज्ञ हों, या जो प्रवासी ऐसा धन हमारे देश में ला सकें जिस धन की हमें कुछ खास परियोजनाओं को पूरा करने के लिये आवश्यकता पड़ रही हो । विशेषज्ञों से उनके कौशल सीख कर हम अपना खुद का कौशल व अपनी योग्यता को बढ़ा सकेंगे । धनी प्रवासियों के धन से हमारी परियोजनायें पूर्ण होंगी । इन दोनों ही माध्यमों के द्वारा भविष्य में हमें पूर्णत: आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मदद मिलेगी ।

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