वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

लिखित विधान

चुनाव-प्रत्याशी हों या स्वयंसेवी सामाजिक-संगठन, बड़ी-बड़ी रैलियाँ हों या उग्र विरोध-प्रदर्शन; परिवर्तन लाने की हमारी तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं । समान सोच रखने वाले साथियों के साथ रैलियाँ निकाल कर नारेबाज़ी करना, बड़ी-बड़ी सभाओं में ढेर सारे समर्थकों के साथ भाग लेना, और चुनावी-युद्ध जीत लेना, ये सब अच्छा तो बहुत लगता है लेकिन अगर आपने कोई विधान-संविधान खुद लिख भी लिया हो तो भी इनमें से कोई भी प्रयास आपके खुद के लिखे हुये विधान-संविधान को पारित नहीं करा सकता

हमारे पुराने पड़ चुके कानूनों को केवल विधान-संविधान ही बदलते हैं । आपको अपना संविधान खुद ही लिखना होगा और इस पर जनमत-संग्रह करवा के उसे पारित करवाना होगा । सबसे पहले तो मौजूदा समस्याओं का अध्ययन करके, उन पर शोधपरक कार्य कर के उनको भली भाँति समझना होगा । तब जा कर हमें इन समस्याओं के समाधानों का सृजन इस प्रकार से करना होगा कि समाधानों के कारण समाज के तमाम तबकों के लोगों के बीच कोई आपसी विवाद या वैमनस्य पैदा न हो सके । इसके बाद, सभी विधानों और कानूनों को सटीक शब्दों में लिपिबद्ध करना होगा जो कि वैलेण्टाइन संविधान में पहले किया जा चुका है ।

अब इसके बाद जनता के वोट से इस नये संविधान को पारित करवा कर लागू करवाने की एक वैधानिक प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी जिसके अन्तर्गत आम चुनावों की तर्ज़ पर मतदान करवाने की व्यवस्था करवानी पडेगी, और अन्तत: इतने बहुमत की आवश्यकता होगी जिससे इस नये संविधान को जनता का पूर्ण अनुसमर्थन मिल सके ।

सारे विधानों व कानूनों का जनक संविधान ही तो होता है । जब इतनी सारी समस्याओं को इतने लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया जाता रहा हो, और इतनी अधिक कानूनसाज़ी की आवश्यकता आन पड़ी हो, और इन कानूनों को पारित करवाने के लिये इतने सारे मतों की ज़रूरत हो, तब एक ऐसे समावेशी समझौते की नितान्त आवश्यकता है जो उन सभी समझदार लोगों को एक साथ जोड़ सके जो आज नासमझी की वजह से अकारण ही देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण विभाजित हो कर अलग-थलग पड़ गये हैं ।

हर्ष का विषय है कि वैलेण्टाइन संविधान ठीक वही समावेशी समझौता व संविधान है जो हमारे-आपके लिये लिये बिलकुल सही वक़्त पर आ गया है ।

लिखित विधान
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

लिखित विधान

चुनाव-प्रत्याशी हों या स्वयंसेवी सामाजिक-संगठन, बड़ी-बड़ी रैलियाँ हों या उग्र विरोध-प्रदर्शन; परिवर्तन लाने की हमारी तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं । समान सोच रखने वाले साथियों के साथ रैलियाँ निकाल कर नारेबाज़ी करना, बड़ी-बड़ी सभाओं में ढेर सारे समर्थकों के साथ भाग लेना, और चुनावी-युद्ध जीत लेना, ये सब अच्छा तो बहुत लगता है लेकिन अगर आपने कोई विधान-संविधान खुद लिख भी लिया हो तो भी इनमें से कोई भी प्रयास आपके खुद के लिखे हुये विधान-संविधान को पारित नहीं करा सकता

हमारे पुराने पड़ चुके कानूनों को केवल विधान-संविधान ही बदलते हैं । आपको अपना संविधान खुद ही लिखना होगा और इस पर जनमत-संग्रह करवा के उसे पारित करवाना होगा । सबसे पहले तो मौजूदा समस्याओं का अध्ययन करके, उन पर शोधपरक कार्य कर के उनको भली भाँति समझना होगा । तब जा कर हमें इन समस्याओं के समाधानों का सृजन इस प्रकार से करना होगा कि समाधानों के कारण समाज के तमाम तबकों के लोगों के बीच कोई आपसी विवाद या वैमनस्य पैदा न हो सके । इसके बाद, सभी विधानों और कानूनों को सटीक शब्दों में लिपिबद्ध करना होगा जो कि वैलेण्टाइन संविधान में पहले किया जा चुका है ।

अब इसके बाद जनता के वोट से इस नये संविधान को पारित करवा कर लागू करवाने की एक वैधानिक प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी जिसके अन्तर्गत आम चुनावों की तर्ज़ पर मतदान करवाने की व्यवस्था करवानी पडेगी, और अन्तत: इतने बहुमत की आवश्यकता होगी जिससे इस नये संविधान को जनता का पूर्ण अनुसमर्थन मिल सके ।

सारे विधानों व कानूनों का जनक संविधान ही तो होता है । जब इतनी सारी समस्याओं को इतने लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया जाता रहा हो, और इतनी अधिक कानूनसाज़ी की आवश्यकता आन पड़ी हो, और इन कानूनों को पारित करवाने के लिये इतने सारे मतों की ज़रूरत हो, तब एक ऐसे समावेशी समझौते की नितान्त आवश्यकता है जो उन सभी समझदार लोगों को एक साथ जोड़ सके जो आज नासमझी की वजह से अकारण ही देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण विभाजित हो कर अलग-थलग पड़ गये हैं ।

हर्ष का विषय है कि वैलेण्टाइन संविधान ठीक वही समावेशी समझौता व संविधान है जो हमारे-आपके लिये लिये बिलकुल सही वक़्त पर आ गया है ।

लिखित विधान
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

लिखित विधान

चुनाव-प्रत्याशी हों या स्वयंसेवी सामाजिक-संगठन, बड़ी-बड़ी रैलियाँ हों या उग्र विरोध-प्रदर्शन; परिवर्तन लाने की हमारी तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं । समान सोच रखने वाले साथियों के साथ रैलियाँ निकाल कर नारेबाज़ी करना, बड़ी-बड़ी सभाओं में ढेर सारे समर्थकों के साथ भाग लेना, और चुनावी-युद्ध जीत लेना, ये सब अच्छा तो बहुत लगता है लेकिन अगर आपने कोई विधान-संविधान खुद लिख भी लिया हो तो भी इनमें से कोई भी प्रयास आपके खुद के लिखे हुये विधान-संविधान को पारित नहीं करा सकता

हमारे पुराने पड़ चुके कानूनों को केवल विधान-संविधान ही बदलते हैं । आपको अपना संविधान खुद ही लिखना होगा और इस पर जनमत-संग्रह करवा के उसे पारित करवाना होगा । सबसे पहले तो मौजूदा समस्याओं का अध्ययन करके, उन पर शोधपरक कार्य कर के उनको भली भाँति समझना होगा । तब जा कर हमें इन समस्याओं के समाधानों का सृजन इस प्रकार से करना होगा कि समाधानों के कारण समाज के तमाम तबकों के लोगों के बीच कोई आपसी विवाद या वैमनस्य पैदा न हो सके । इसके बाद, सभी विधानों और कानूनों को सटीक शब्दों में लिपिबद्ध करना होगा जो कि वैलेण्टाइन संविधान में पहले किया जा चुका है ।

अब इसके बाद जनता के वोट से इस नये संविधान को पारित करवा कर लागू करवाने की एक वैधानिक प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी जिसके अन्तर्गत आम चुनावों की तर्ज़ पर मतदान करवाने की व्यवस्था करवानी पडेगी, और अन्तत: इतने बहुमत की आवश्यकता होगी जिससे इस नये संविधान को जनता का पूर्ण अनुसमर्थन मिल सके ।

सारे विधानों व कानूनों का जनक संविधान ही तो होता है । जब इतनी सारी समस्याओं को इतने लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया जाता रहा हो, और इतनी अधिक कानूनसाज़ी की आवश्यकता आन पड़ी हो, और इन कानूनों को पारित करवाने के लिये इतने सारे मतों की ज़रूरत हो, तब एक ऐसे समावेशी समझौते की नितान्त आवश्यकता है जो उन सभी समझदार लोगों को एक साथ जोड़ सके जो आज नासमझी की वजह से अकारण ही देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण विभाजित हो कर अलग-थलग पड़ गये हैं ।

हर्ष का विषय है कि वैलेण्टाइन संविधान ठीक वही समावेशी समझौता व संविधान है जो हमारे-आपके लिये लिये बिलकुल सही वक़्त पर आ गया है ।

लिखित विधान