वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

भोजन तथा कृषि

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत एक-फसलीय खेती* पर, फसलों या सब्ज़ियों आदि के आकार बढ़ाने वाले हारमोन्स के उपयोग पर, कृषि में काम आने वाले पशुओं को अनावश्यक दवाइयाँ देने आदि पर पूर्ण प्रतिबंध होगा । साथ ही रसायनिक खादों पर, कीटनाशकों तथा खर-पतवार नष्ट करने वाले रसायनों पर भी पूर्ण प्रतिबंध होगा । ये सभी हानिकारक रसायन हमारी भूमि व जल में समा कर आज हमारे जल-भंडार को व हमारे भोजन को तो विषाक्त कर ही रहे हैं, साथ ही उन कीटों-मक्खियों आदि का भी संहार कर रहे हैं जो फसलों के सेचन तथा फलने-फूलने के लिये आवश्यक होते हैं और जिनके बिना हम फसलें उगा ही नहीं सकते । जिस नाइट्रोजन का प्रयोग आजकल अधिक उपज लेने के चक्कर में धड़ल्ले से हो रहा है वह नाइट्रोजन हमारे ताल-तलैयों में, नदियों में व समुद्रों में भारी मात्रा में शैवाल पैदा करती है । यह शैवाल पानी में मौजूद ऑक्सीजन को सोख कर मछलियों व अन्य जलीय-जन्तुओं को मार देता है । साथ ही ऐसे बहुतेरे रसायन भी हैं जो सफ़ाई वग़ैरह के काम आते हैं, या जिनका उपयोग तरह-तरह के पेण्ट बनाने में तथा साफ़-सफ़ाई के कामों में तथा िचपकाने वाले पदार्थों घोल आदि निर्माण में होता है । रसायनों से नष्ट किया गया अथवा समुद्र में फेंक कर नष्ट किया गया प्लास्टिक कचरा भी खुद ही एक ज़हरीला रसायन बन जाता है । ये सभी विषैले रसायन भूमि व जल के माध्यम से हमारे खाद्य-पदार्थों में समा जाते हैं । यही विषाक्त भोजन हमारे शरीर में प्रविष्ट हो कर कैंसर और दूसरी घातक बीमारियों को जन्म देता है, जिसके परिणामस्वरूप इलाज आदि पर तो अरबों रूपये खर्च होते ही हैं, साथ ही साथ लोगों की नौकरियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है; और इन सबसे दुखद तो यह कि हम अपने प्रियजनों के जीवन से हाथ धो बैठते हैं

*[एक-फसलीय खेती कृषि का वह प्रकार है जिसके अन्तर्गत एक खास खेत में, एक समय में केवल एक प्रकार की फसल उगायी जाती है । जब कि बहु-फसलीय प्रणाली के अन्तर्गत एक खेत में एक समय में दो या दो से अधिक फसलों के साथ एक खेत बोया-उगाया जाता है । ध्यान रहे कि एक-फसलीय खेती की अवधारणा केवल फसलों पर ही लागू नहीं होती है, बल्कि किसानों द्वारा पाले जाने वाले जानवरों पर भी लागू होती है । बहु-फसलीय खेती के कई लाभ हैं, जब कि एक-फसलीय खेती करने से बहुत सारी हानियाँ होती हैं ।]

इस तरह की िवषैली खेती अब सस्ती भी नहीं रही । इसके विपरीत जैविक या प्राकृतिक खेती सस्ती तो पड़ती ही है, उससे उत्पन्न खाद्य कहीं अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट भी होते हैं और इन खाद्य-वस्तुओं का स्वाद बढ़ाने के लिये किसी कृतिम गंध आदि का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता । वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत सारी खेती प्राकृतिक व जैविक ही होगी । हमारे भोजन से, हमारी हवा से और हमारे जल-भंडार से सभी प्रकार के ज़हर मिटा दिये जायेंगे । मधुमक्खियों तथा अन्य सेचनकारी (खेती के लिये आवश्यक) कीट-पतंगों का जीवन नष्ट नहीं होगा । हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के अनुकूल होगा, हमारी खाद्य-श्रृंखला फलेगी-फूलेगी, और फलत: हमारे नागरिक स्वस्थ व संपुष्ट रहेंगे ।

भोजन तथा कृषि
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

भोजन तथा कृषि

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत एक-फसलीय खेती* पर, फसलों या सब्ज़ियों आदि के आकार बढ़ाने वाले हारमोन्स के उपयोग पर, कृषि में काम आने वाले पशुओं को अनावश्यक दवाइयाँ देने आदि पर पूर्ण प्रतिबंध होगा । साथ ही रसायनिक खादों पर, कीटनाशकों तथा खर-पतवार नष्ट करने वाले रसायनों पर भी पूर्ण प्रतिबंध होगा । ये सभी हानिकारक रसायन हमारी भूमि व जल में समा कर आज हमारे जल-भंडार को व हमारे भोजन को तो विषाक्त कर ही रहे हैं, साथ ही उन कीटों-मक्खियों आदि का भी संहार कर रहे हैं जो फसलों के सेचन तथा फलने-फूलने के लिये आवश्यक होते हैं और जिनके बिना हम फसलें उगा ही नहीं सकते । जिस नाइट्रोजन का प्रयोग आजकल अधिक उपज लेने के चक्कर में धड़ल्ले से हो रहा है वह नाइट्रोजन हमारे ताल-तलैयों में, नदियों में व समुद्रों में भारी मात्रा में शैवाल पैदा करती है । यह शैवाल पानी में मौजूद ऑक्सीजन को सोख कर मछलियों व अन्य जलीय-जन्तुओं को मार देता है । साथ ही ऐसे बहुतेरे रसायन भी हैं जो सफ़ाई वग़ैरह के काम आते हैं, या जिनका उपयोग तरह-तरह के पेण्ट बनाने में तथा साफ़-सफ़ाई के कामों में तथा िचपकाने वाले पदार्थों घोल आदि निर्माण में होता है । रसायनों से नष्ट किया गया अथवा समुद्र में फेंक कर नष्ट किया गया प्लास्टिक कचरा भी खुद ही एक ज़हरीला रसायन बन जाता है । ये सभी विषैले रसायन भूमि व जल के माध्यम से हमारे खाद्य-पदार्थों में समा जाते हैं । यही विषाक्त भोजन हमारे शरीर में प्रविष्ट हो कर कैंसर और दूसरी घातक बीमारियों को जन्म देता है, जिसके परिणामस्वरूप इलाज आदि पर तो अरबों रूपये खर्च होते ही हैं, साथ ही साथ लोगों की नौकरियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है; और इन सबसे दुखद तो यह कि हम अपने प्रियजनों के जीवन से हाथ धो बैठते हैं

*[एक-फसलीय खेती कृषि का वह प्रकार है जिसके अन्तर्गत एक खास खेत में, एक समय में केवल एक प्रकार की फसल उगायी जाती है । जब कि बहु-फसलीय प्रणाली के अन्तर्गत एक खेत में एक समय में दो या दो से अधिक फसलों के साथ एक खेत बोया-उगाया जाता है । ध्यान रहे कि एक-फसलीय खेती की अवधारणा केवल फसलों पर ही लागू नहीं होती है, बल्कि किसानों द्वारा पाले जाने वाले जानवरों पर भी लागू होती है । बहु-फसलीय खेती के कई लाभ हैं, जब कि एक-फसलीय खेती करने से बहुत सारी हानियाँ होती हैं ।]

इस तरह की िवषैली खेती अब सस्ती भी नहीं रही । इसके विपरीत जैविक या प्राकृतिक खेती सस्ती तो पड़ती ही है, उससे उत्पन्न खाद्य कहीं अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट भी होते हैं और इन खाद्य-वस्तुओं का स्वाद बढ़ाने के लिये किसी कृतिम गंध आदि का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता । वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत सारी खेती प्राकृतिक व जैविक ही होगी । हमारे भोजन से, हमारी हवा से और हमारे जल-भंडार से सभी प्रकार के ज़हर मिटा दिये जायेंगे । मधुमक्खियों तथा अन्य सेचनकारी (खेती के लिये आवश्यक) कीट-पतंगों का जीवन नष्ट नहीं होगा । हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के अनुकूल होगा, हमारी खाद्य-श्रृंखला फलेगी-फूलेगी, और फलत: हमारे नागरिक स्वस्थ व संपुष्ट रहेंगे ।

भोजन तथा कृषि
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

भोजन तथा कृषि

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत एक-फसलीय खेती* पर, फसलों या सब्ज़ियों आदि के आकार बढ़ाने वाले हारमोन्स के उपयोग पर, कृषि में काम आने वाले पशुओं को अनावश्यक दवाइयाँ देने आदि पर पूर्ण प्रतिबंध होगा । साथ ही रसायनिक खादों पर, कीटनाशकों तथा खर-पतवार नष्ट करने वाले रसायनों पर भी पूर्ण प्रतिबंध होगा । ये सभी हानिकारक रसायन हमारी भूमि व जल में समा कर आज हमारे जल-भंडार को व हमारे भोजन को तो विषाक्त कर ही रहे हैं, साथ ही उन कीटों-मक्खियों आदि का भी संहार कर रहे हैं जो फसलों के सेचन तथा फलने-फूलने के लिये आवश्यक होते हैं और जिनके बिना हम फसलें उगा ही नहीं सकते । जिस नाइट्रोजन का प्रयोग आजकल अधिक उपज लेने के चक्कर में धड़ल्ले से हो रहा है वह नाइट्रोजन हमारे ताल-तलैयों में, नदियों में व समुद्रों में भारी मात्रा में शैवाल पैदा करती है । यह शैवाल पानी में मौजूद ऑक्सीजन को सोख कर मछलियों व अन्य जलीय-जन्तुओं को मार देता है । साथ ही ऐसे बहुतेरे रसायन भी हैं जो सफ़ाई वग़ैरह के काम आते हैं, या जिनका उपयोग तरह-तरह के पेण्ट बनाने में तथा साफ़-सफ़ाई के कामों में तथा िचपकाने वाले पदार्थों घोल आदि निर्माण में होता है । रसायनों से नष्ट किया गया अथवा समुद्र में फेंक कर नष्ट किया गया प्लास्टिक कचरा भी खुद ही एक ज़हरीला रसायन बन जाता है । ये सभी विषैले रसायन भूमि व जल के माध्यम से हमारे खाद्य-पदार्थों में समा जाते हैं । यही विषाक्त भोजन हमारे शरीर में प्रविष्ट हो कर कैंसर और दूसरी घातक बीमारियों को जन्म देता है, जिसके परिणामस्वरूप इलाज आदि पर तो अरबों रूपये खर्च होते ही हैं, साथ ही साथ लोगों की नौकरियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है; और इन सबसे दुखद तो यह कि हम अपने प्रियजनों के जीवन से हाथ धो बैठते हैं

*[एक-फसलीय खेती कृषि का वह प्रकार है जिसके अन्तर्गत एक खास खेत में, एक समय में केवल एक प्रकार की फसल उगायी जाती है । जब कि बहु-फसलीय प्रणाली के अन्तर्गत एक खेत में एक समय में दो या दो से अधिक फसलों के साथ एक खेत बोया-उगाया जाता है । ध्यान रहे कि एक-फसलीय खेती की अवधारणा केवल फसलों पर ही लागू नहीं होती है, बल्कि किसानों द्वारा पाले जाने वाले जानवरों पर भी लागू होती है । बहु-फसलीय खेती के कई लाभ हैं, जब कि एक-फसलीय खेती करने से बहुत सारी हानियाँ होती हैं ।]

इस तरह की िवषैली खेती अब सस्ती भी नहीं रही । इसके विपरीत जैविक या प्राकृतिक खेती सस्ती तो पड़ती ही है, उससे उत्पन्न खाद्य कहीं अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट भी होते हैं और इन खाद्य-वस्तुओं का स्वाद बढ़ाने के लिये किसी कृतिम गंध आदि का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता । वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत सारी खेती प्राकृतिक व जैविक ही होगी । हमारे भोजन से, हमारी हवा से और हमारे जल-भंडार से सभी प्रकार के ज़हर मिटा दिये जायेंगे । मधुमक्खियों तथा अन्य सेचनकारी (खेती के लिये आवश्यक) कीट-पतंगों का जीवन नष्ट नहीं होगा । हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के अनुकूल होगा, हमारी खाद्य-श्रृंखला फलेगी-फूलेगी, और फलत: हमारे नागरिक स्वस्थ व संपुष्ट रहेंगे ।

भोजन तथा कृषि