वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

बैंक स्प्रेड अर्थात् बैंक प्रसार

(बैंकिग की भाषा में ‘बैंक स्प्रेड’ का अर्थ है बैंक द्वारा आपकी जमा राशि पर दिये जाने वाले ब्याज की दर [सूद की दर] और बैंक के दिये जाने वाले ऋण पर संबंधित बैंक द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज की दर के बीच का अंतर ।

उदाहरार्थ, अगर बैंक लोगों की जमा कराई जाने वाली राशि पर २% ब्याज देता है, और लोगों द्वारा बैंक से कर्ज़ लेने पर उनसे १०% ब्याज वसूलता है तो दोनों के बीच का अंतर १०-२ = ८ हुआ ।

इसका अर्थ हुआ कि बैंक का बैंक-स्प्रेड ८ है । “बैंक स्प्रेड” का आकलन कर के ही हम बैंकों को होनेवाले लाभ का अनुमान भी लगा सकते हैं। “बैंक स्प्रेड” को हिन्दी भाषा में “बैंक-प्रसार” कह सकते हैं ।)

पहला प्रसार: उदाहरणार्थ आजकल की व्यवस्था में जहाँ बैंक आपकी बचत पर आपको २% ब्याज देता है, वहीं आपको कर्ज़ देने पर आपसे ५% ब्याज वसूलता है । इसे हम ‘ब्याज प्रसार’ कह सकते हैं ।

दूसरा प्रसार: आजकल बैंक अपनी जमापूँजी से ३३% अधिक तक का कर्ज़ आवंटित कर सकते हैं, या, दूसरे शब्दों में आपके द्वारा जमा किये गये १००० रूपये के बदले लोगों को ३३,००० रूपये तक के कर्ज़ दे सकते हैं । आख़िर इन पैसे के लिये बैंकों के स्वामी करते क्या हैं ? वे कर्ज़दार के सारे विवरण एक कम्यूटर प्रोग्राम में डाल देते हैं, और फिर यह कम्प्यूटर प्रोग्राम ही कर्ज़ को मंज़ूर या नामंजूर कर देता है, और साथ ही ब्याज की दर का भी निर्धारण भी खुद ही करता है । वैलेण्टाइन संविधान की व्यवस्था में आप अपने ऑनलाइन खाते में जा कर यह सब कुछ खुद ही बस अपने माउस का बटन दबा कर कर सकते हैं । इस तरह से आपको किसी “पूछताछ” का भी सामना नहीं करना पड़ेगा (जो आपकी कर्ज़ लेने की पात्रता पर विपरीत प्रभाव डालती है), तथा कोई क्रेडिट रिपोर्टिंग एजेंसी जैसी चीज़ भी नहीं रह जायेगी । साथ ही आपको अपनी बचत पर कहीं अधिक ब्याज मिलेगा, जबकि कर्ज़ लेने पर आपको काफ़ी कम ब्याज देना होगा ।

तीसरा प्रसार: आजकल के बैंक एक खाते से दूसरे खाते में जाने की प्रक्रिया के दौरान “उपलब्ध” हो पाने की प्रतीक्षा में पड़े रह जाने वाली रकम पर प्राप्त ब्याज को स्वयं ही रख लेते हैं । आख़िर आज के त्वरित लेनदेन के दौर में रकम के एक खाते से दूसरे खाते में जाने की प्रक्रिया में कितना अधिक समय लग सकता है ? जवाब स्पष्ट है । इसका अर्थ हुआ कि बैंकों के लिये पैसों का यह अनावश्यक धीमा लेनदेन भी मुनाफ़ा कमाने का एक अनुचित साधन बना हुआ है । यह खेल खत्म होगा ।

चौथा प्रसार: इन सब बातों के अलावा आम नागरिक तथा ग्राहक (हम और आप) ही भवनों में स्थित बैंक-शाखाओं पर होने वाले सभी खर्चों का भार उठाते हैं: ज़मीन हो, पार्किंग हो, भवन हो, बिजली-पानी हो या कागज़-कलम-कम्प्यूटर समेत बैंक कर्मियों के वेतन आदि पर होने वाले खर्च हों, इस सभी का बोझ हम नागरिकों पर ही पड़ता है, जो कि अनुचित है ।

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत बैंक जन-सुविधा के निमित्त होंगे और इसलिये इन सभी वास्तविक (भवनों में स्थित) बैंक शाखाओं पर होने वाले खर्च का बोझ तो ग्राहकों पर नहीं ही पड़ेगा; साथ ही ऊपर जिन अन्य तीन बैंक-प्रसारों का उल्लेख किया गया है उनका बोझ भी ग्राहकों पर नहीं होगा । इसके अतिरिक्त ग्राहकों को उचित व न्यायसंगत ब्याज दर भी प्राप्त हो सकेगी ।

बैंक स्प्रेड अर्थात् बैंक प्रसार
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

बैंक स्प्रेड अर्थात् बैंक प्रसार

(बैंकिग की भाषा में ‘बैंक स्प्रेड’ का अर्थ है बैंक द्वारा आपकी जमा राशि पर दिये जाने वाले ब्याज की दर [सूद की दर] और बैंक के दिये जाने वाले ऋण पर संबंधित बैंक द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज की दर के बीच का अंतर ।

उदाहरार्थ, अगर बैंक लोगों की जमा कराई जाने वाली राशि पर २% ब्याज देता है, और लोगों द्वारा बैंक से कर्ज़ लेने पर उनसे १०% ब्याज वसूलता है तो दोनों के बीच का अंतर १०-२ = ८ हुआ ।

इसका अर्थ हुआ कि बैंक का बैंक-स्प्रेड ८ है । “बैंक स्प्रेड” का आकलन कर के ही हम बैंकों को होनेवाले लाभ का अनुमान भी लगा सकते हैं। “बैंक स्प्रेड” को हिन्दी भाषा में “बैंक-प्रसार” कह सकते हैं ।)

पहला प्रसार: उदाहरणार्थ आजकल की व्यवस्था में जहाँ बैंक आपकी बचत पर आपको २% ब्याज देता है, वहीं आपको कर्ज़ देने पर आपसे ५% ब्याज वसूलता है । इसे हम ‘ब्याज प्रसार’ कह सकते हैं ।

दूसरा प्रसार: आजकल बैंक अपनी जमापूँजी से ३३% अधिक तक का कर्ज़ आवंटित कर सकते हैं, या, दूसरे शब्दों में आपके द्वारा जमा किये गये १००० रूपये के बदले लोगों को ३३,००० रूपये तक के कर्ज़ दे सकते हैं । आख़िर इन पैसे के लिये बैंकों के स्वामी करते क्या हैं ? वे कर्ज़दार के सारे विवरण एक कम्यूटर प्रोग्राम में डाल देते हैं, और फिर यह कम्प्यूटर प्रोग्राम ही कर्ज़ को मंज़ूर या नामंजूर कर देता है, और साथ ही ब्याज की दर का भी निर्धारण भी खुद ही करता है । वैलेण्टाइन संविधान की व्यवस्था में आप अपने ऑनलाइन खाते में जा कर यह सब कुछ खुद ही बस अपने माउस का बटन दबा कर कर सकते हैं । इस तरह से आपको किसी “पूछताछ” का भी सामना नहीं करना पड़ेगा (जो आपकी कर्ज़ लेने की पात्रता पर विपरीत प्रभाव डालती है), तथा कोई क्रेडिट रिपोर्टिंग एजेंसी जैसी चीज़ भी नहीं रह जायेगी । साथ ही आपको अपनी बचत पर कहीं अधिक ब्याज मिलेगा, जबकि कर्ज़ लेने पर आपको काफ़ी कम ब्याज देना होगा ।

तीसरा प्रसार: आजकल के बैंक एक खाते से दूसरे खाते में जाने की प्रक्रिया के दौरान “उपलब्ध” हो पाने की प्रतीक्षा में पड़े रह जाने वाली रकम पर प्राप्त ब्याज को स्वयं ही रख लेते हैं । आख़िर आज के त्वरित लेनदेन के दौर में रकम के एक खाते से दूसरे खाते में जाने की प्रक्रिया में कितना अधिक समय लग सकता है ? जवाब स्पष्ट है । इसका अर्थ हुआ कि बैंकों के लिये पैसों का यह अनावश्यक धीमा लेनदेन भी मुनाफ़ा कमाने का एक अनुचित साधन बना हुआ है । यह खेल खत्म होगा ।

चौथा प्रसार: इन सब बातों के अलावा आम नागरिक तथा ग्राहक (हम और आप) ही भवनों में स्थित बैंक-शाखाओं पर होने वाले सभी खर्चों का भार उठाते हैं: ज़मीन हो, पार्किंग हो, भवन हो, बिजली-पानी हो या कागज़-कलम-कम्प्यूटर समेत बैंक कर्मियों के वेतन आदि पर होने वाले खर्च हों, इस सभी का बोझ हम नागरिकों पर ही पड़ता है, जो कि अनुचित है ।

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत बैंक जन-सुविधा के निमित्त होंगे और इसलिये इन सभी वास्तविक (भवनों में स्थित) बैंक शाखाओं पर होने वाले खर्च का बोझ तो ग्राहकों पर नहीं ही पड़ेगा; साथ ही ऊपर जिन अन्य तीन बैंक-प्रसारों का उल्लेख किया गया है उनका बोझ भी ग्राहकों पर नहीं होगा । इसके अतिरिक्त ग्राहकों को उचित व न्यायसंगत ब्याज दर भी प्राप्त हो सकेगी ।

बैंक स्प्रेड अर्थात् बैंक प्रसार
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

बैंक स्प्रेड अर्थात् बैंक प्रसार

(बैंकिग की भाषा में ‘बैंक स्प्रेड’ का अर्थ है बैंक द्वारा आपकी जमा राशि पर दिये जाने वाले ब्याज की दर [सूद की दर] और बैंक के दिये जाने वाले ऋण पर संबंधित बैंक द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज की दर के बीच का अंतर ।

उदाहरार्थ, अगर बैंक लोगों की जमा कराई जाने वाली राशि पर २% ब्याज देता है, और लोगों द्वारा बैंक से कर्ज़ लेने पर उनसे १०% ब्याज वसूलता है तो दोनों के बीच का अंतर १०-२ = ८ हुआ ।

इसका अर्थ हुआ कि बैंक का बैंक-स्प्रेड ८ है । “बैंक स्प्रेड” का आकलन कर के ही हम बैंकों को होनेवाले लाभ का अनुमान भी लगा सकते हैं। “बैंक स्प्रेड” को हिन्दी भाषा में “बैंक-प्रसार” कह सकते हैं ।)

पहला प्रसार: उदाहरणार्थ आजकल की व्यवस्था में जहाँ बैंक आपकी बचत पर आपको २% ब्याज देता है, वहीं आपको कर्ज़ देने पर आपसे ५% ब्याज वसूलता है । इसे हम ‘ब्याज प्रसार’ कह सकते हैं ।

दूसरा प्रसार: आजकल बैंक अपनी जमापूँजी से ३३% अधिक तक का कर्ज़ आवंटित कर सकते हैं, या, दूसरे शब्दों में आपके द्वारा जमा किये गये १००० रूपये के बदले लोगों को ३३,००० रूपये तक के कर्ज़ दे सकते हैं । आख़िर इन पैसे के लिये बैंकों के स्वामी करते क्या हैं ? वे कर्ज़दार के सारे विवरण एक कम्यूटर प्रोग्राम में डाल देते हैं, और फिर यह कम्प्यूटर प्रोग्राम ही कर्ज़ को मंज़ूर या नामंजूर कर देता है, और साथ ही ब्याज की दर का भी निर्धारण भी खुद ही करता है । वैलेण्टाइन संविधान की व्यवस्था में आप अपने ऑनलाइन खाते में जा कर यह सब कुछ खुद ही बस अपने माउस का बटन दबा कर कर सकते हैं । इस तरह से आपको किसी “पूछताछ” का भी सामना नहीं करना पड़ेगा (जो आपकी कर्ज़ लेने की पात्रता पर विपरीत प्रभाव डालती है), तथा कोई क्रेडिट रिपोर्टिंग एजेंसी जैसी चीज़ भी नहीं रह जायेगी । साथ ही आपको अपनी बचत पर कहीं अधिक ब्याज मिलेगा, जबकि कर्ज़ लेने पर आपको काफ़ी कम ब्याज देना होगा ।

तीसरा प्रसार: आजकल के बैंक एक खाते से दूसरे खाते में जाने की प्रक्रिया के दौरान “उपलब्ध” हो पाने की प्रतीक्षा में पड़े रह जाने वाली रकम पर प्राप्त ब्याज को स्वयं ही रख लेते हैं । आख़िर आज के त्वरित लेनदेन के दौर में रकम के एक खाते से दूसरे खाते में जाने की प्रक्रिया में कितना अधिक समय लग सकता है ? जवाब स्पष्ट है । इसका अर्थ हुआ कि बैंकों के लिये पैसों का यह अनावश्यक धीमा लेनदेन भी मुनाफ़ा कमाने का एक अनुचित साधन बना हुआ है । यह खेल खत्म होगा ।

चौथा प्रसार: इन सब बातों के अलावा आम नागरिक तथा ग्राहक (हम और आप) ही भवनों में स्थित बैंक-शाखाओं पर होने वाले सभी खर्चों का भार उठाते हैं: ज़मीन हो, पार्किंग हो, भवन हो, बिजली-पानी हो या कागज़-कलम-कम्प्यूटर समेत बैंक कर्मियों के वेतन आदि पर होने वाले खर्च हों, इस सभी का बोझ हम नागरिकों पर ही पड़ता है, जो कि अनुचित है ।

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत बैंक जन-सुविधा के निमित्त होंगे और इसलिये इन सभी वास्तविक (भवनों में स्थित) बैंक शाखाओं पर होने वाले खर्च का बोझ तो ग्राहकों पर नहीं ही पड़ेगा; साथ ही ऊपर जिन अन्य तीन बैंक-प्रसारों का उल्लेख किया गया है उनका बोझ भी ग्राहकों पर नहीं होगा । इसके अतिरिक्त ग्राहकों को उचित व न्यायसंगत ब्याज दर भी प्राप्त हो सकेगी ।

बैंक स्प्रेड अर्थात् बैंक प्रसार