वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

पर्यावरण

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत टिकाऊ प्राकृतिक/जैविक खेती अनिवार्य होगी । प्राकृतिक या जैविक खेती उन रसायनिक खादों से मुक्त होती है जो सेचनकारी कीटों को मार देती हैं, प्राकृतिक या जैविक खेती नाइट्रोजन से मुक्त होती है जो हमारी मछलियों व अन्य जन्तुओं को मार देती है तथा उन विषाक्त पदार्थों से मुक्त होती है जो हम मनुष्यों को बीमार बना कर मार देते हैं । एक-फसलीय खेती करने तथा गहराई से जल दोहन करने पर प्रतिबन्ध रहेगा । इस संविधान के प्रावधानों के द्वारा नदियों के प्राकृतिक बहाव को फिर से बहाल किया जायेगा ताकि तेज़ी से समाप्त हो रहे हमारे जल-भंडार को और हमारी खाद्य-श्रृंखला को बचाया जा सके । पीने योग्य मीठे पानी के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध होगा, यहाँ तक कि पानी से भरपूर फसलों का निर्यात तक प्रतिबन्धित होगा । हमारे राष्ट्रीय जल-भण्डार को बढ़ाया जायेगा । इस जल-भंडार का दोहन तथा मत्स्य-पालन (भोजन हेतु मछलियाँ पालना व पकड़ना) हमारी जल-संचय की सीमाओं को ध्यान में रखते हुये केवल घरेलू उपभोग के लिये ही किया जा सकेगा । ज़हर फैलाने वाले तेल, गैस, कोयले व पन-बिजली जैसे प्रदूषक घटकों के बजाय उर्जा संबंधी आवश्यकताओ की पूर्तिं के लिये स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जायेगा (जेट विमान-यात्रा इसका अपवाद होगी)। परमाणु हथियार बनाने वाले कारखाने, पन-बिजली के लिये बनाये विशाल बाँध बन्द किये जायेंगे । सफ़ाई के काम आने वाले सभी उत्पाद, भवन-निर्माण के काम में आने वाले सभी उत्पाद और सभी प्रकार की पैकेजिंग आदि काम आनेवाली वस्तुएँ ज़हरीले पदार्थों से मुक्त रहेंगी । पैकेजिंग में काम आने वाले उत्पाद बार-बार इस्तेमाल करने योग्य रहेंगे तथा समय व स्थान बर्बाद करने वाली जंक मेल (अनावश्यक मेल) प्रतिबंधित रहेंगी ।

प्रकृति-पर्यटन (प्रकृति का आनंद लेने के लिये होने वाला पर्यटन) को एक बड़ा उद्योग बनाया जायेगा जिससे हमारे लिये अति-आवश्यक राजस्व तो मिलेगा ही, साथ ही स्वास्थ्य के लिये लाभकारी कई काम-धन्धों का भी सृजन होगा, जैसे : पर्यावरण-सुधारक, यात्रायें तथा टूर के काम, गाइड, शिक्षक जो पर्यावरण की विशेषताओं के बारे में बता सकें, कपड़े, पर्यटन के काम आने वाले साजो-सामान, पर्यटकों के लिये किराये के कमरे या घर, पर्यटकों के लिये विभिन्न चीज़ों का निर्माण व उन चीज़ों की बिक्री, होटल, रेस्टोरेण्ट, बार तथा इन सभी चीज़ों की आपूर्ति के लिये आवश्यक खेती, भोजन व पेय का उत्पादन ।

िवषैली खेती तो अब सस्ती भी नहीं रही । इसके विपरीत जैविक या प्राकृतिक खेती सस्ती तो पड़ती ही है, उससे उत्पन्न खाद्य कहीं अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट भी होते हैं और साथ ही इन खाद्य-वस्तुओं का स्वाद बढ़ाने के लिये किसी कृतिम गंध आदि का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता । वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत सारी खेती प्राकृतिक व जैविक ही होगी । हमारे भोजन से, हमारी हवा से और हमारे जल-भंडार से सभी प्रकार के ज़हर मिटा दिये जायेंगे । मधुमक्खियों तथा अन्य सेचनकारी (खेती के लिये आवश्यक) कीट-पतंगों का जीवन नष्ट नहीं होगा । हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के अनुकूल होगा, हमारी खाद्य-श्रृंखला फलेगी-फूलेगी, और फलत: हमारे नागरिक स्वस्थ व संपुष्ट रहेंगे ।

पर्यावरण
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वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत टिकाऊ प्राकृतिक/जैविक खेती अनिवार्य होगी । प्राकृतिक या जैविक खेती उन रसायनिक खादों से मुक्त होती है जो सेचनकारी कीटों को मार देती हैं, प्राकृतिक या जैविक खेती नाइट्रोजन से मुक्त होती है जो हमारी मछलियों व अन्य जन्तुओं को मार देती है तथा उन विषाक्त पदार्थों से मुक्त होती है जो हम मनुष्यों को बीमार बना कर मार देते हैं । एक-फसलीय खेती करने तथा गहराई से जल दोहन करने पर प्रतिबन्ध रहेगा । इस संविधान के प्रावधानों के द्वारा नदियों के प्राकृतिक बहाव को फिर से बहाल किया जायेगा ताकि तेज़ी से समाप्त हो रहे हमारे जल-भंडार को और हमारी खाद्य-श्रृंखला को बचाया जा सके । पीने योग्य मीठे पानी के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध होगा, यहाँ तक कि पानी से भरपूर फसलों का निर्यात तक प्रतिबन्धित होगा । हमारे राष्ट्रीय जल-भण्डार को बढ़ाया जायेगा । इस जल-भंडार का दोहन तथा मत्स्य-पालन (भोजन हेतु मछलियाँ पालना व पकड़ना) हमारी जल-संचय की सीमाओं को ध्यान में रखते हुये केवल घरेलू उपभोग के लिये ही किया जा सकेगा । ज़हर फैलाने वाले तेल, गैस, कोयले व पन-बिजली जैसे प्रदूषक घटकों के बजाय उर्जा संबंधी आवश्यकताओ की पूर्तिं के लिये स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जायेगा (जेट विमान-यात्रा इसका अपवाद होगी)। परमाणु हथियार बनाने वाले कारखाने, पन-बिजली के लिये बनाये विशाल बाँध बन्द किये जायेंगे । सफ़ाई के काम आने वाले सभी उत्पाद, भवन-निर्माण के काम में आने वाले सभी उत्पाद और सभी प्रकार की पैकेजिंग आदि काम आनेवाली वस्तुएँ ज़हरीले पदार्थों से मुक्त रहेंगी । पैकेजिंग में काम आने वाले उत्पाद बार-बार इस्तेमाल करने योग्य रहेंगे तथा समय व स्थान बर्बाद करने वाली जंक मेल (अनावश्यक मेल) प्रतिबंधित रहेंगी ।

प्रकृति-पर्यटन (प्रकृति का आनंद लेने के लिये होने वाला पर्यटन) को एक बड़ा उद्योग बनाया जायेगा जिससे हमारे लिये अति-आवश्यक राजस्व तो मिलेगा ही, साथ ही स्वास्थ्य के लिये लाभकारी कई काम-धन्धों का भी सृजन होगा, जैसे : पर्यावरण-सुधारक, यात्रायें तथा टूर के काम, गाइड, शिक्षक जो पर्यावरण की विशेषताओं के बारे में बता सकें, कपड़े, पर्यटन के काम आने वाले साजो-सामान, पर्यटकों के लिये किराये के कमरे या घर, पर्यटकों के लिये विभिन्न चीज़ों का निर्माण व उन चीज़ों की बिक्री, होटल, रेस्टोरेण्ट, बार तथा इन सभी चीज़ों की आपूर्ति के लिये आवश्यक खेती, भोजन व पेय का उत्पादन ।

िवषैली खेती तो अब सस्ती भी नहीं रही । इसके विपरीत जैविक या प्राकृतिक खेती सस्ती तो पड़ती ही है, उससे उत्पन्न खाद्य कहीं अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट भी होते हैं और साथ ही इन खाद्य-वस्तुओं का स्वाद बढ़ाने के लिये किसी कृतिम गंध आदि का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता । वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत सारी खेती प्राकृतिक व जैविक ही होगी । हमारे भोजन से, हमारी हवा से और हमारे जल-भंडार से सभी प्रकार के ज़हर मिटा दिये जायेंगे । मधुमक्खियों तथा अन्य सेचनकारी (खेती के लिये आवश्यक) कीट-पतंगों का जीवन नष्ट नहीं होगा । हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के अनुकूल होगा, हमारी खाद्य-श्रृंखला फलेगी-फूलेगी, और फलत: हमारे नागरिक स्वस्थ व संपुष्ट रहेंगे ।

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वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत टिकाऊ प्राकृतिक/जैविक खेती अनिवार्य होगी । प्राकृतिक या जैविक खेती उन रसायनिक खादों से मुक्त होती है जो सेचनकारी कीटों को मार देती हैं, प्राकृतिक या जैविक खेती नाइट्रोजन से मुक्त होती है जो हमारी मछलियों व अन्य जन्तुओं को मार देती है तथा उन विषाक्त पदार्थों से मुक्त होती है जो हम मनुष्यों को बीमार बना कर मार देते हैं । एक-फसलीय खेती करने तथा गहराई से जल दोहन करने पर प्रतिबन्ध रहेगा । इस संविधान के प्रावधानों के द्वारा नदियों के प्राकृतिक बहाव को फिर से बहाल किया जायेगा ताकि तेज़ी से समाप्त हो रहे हमारे जल-भंडार को और हमारी खाद्य-श्रृंखला को बचाया जा सके । पीने योग्य मीठे पानी के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध होगा, यहाँ तक कि पानी से भरपूर फसलों का निर्यात तक प्रतिबन्धित होगा । हमारे राष्ट्रीय जल-भण्डार को बढ़ाया जायेगा । इस जल-भंडार का दोहन तथा मत्स्य-पालन (भोजन हेतु मछलियाँ पालना व पकड़ना) हमारी जल-संचय की सीमाओं को ध्यान में रखते हुये केवल घरेलू उपभोग के लिये ही किया जा सकेगा । ज़हर फैलाने वाले तेल, गैस, कोयले व पन-बिजली जैसे प्रदूषक घटकों के बजाय उर्जा संबंधी आवश्यकताओ की पूर्तिं के लिये स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जायेगा (जेट विमान-यात्रा इसका अपवाद होगी)। परमाणु हथियार बनाने वाले कारखाने, पन-बिजली के लिये बनाये विशाल बाँध बन्द किये जायेंगे । सफ़ाई के काम आने वाले सभी उत्पाद, भवन-निर्माण के काम में आने वाले सभी उत्पाद और सभी प्रकार की पैकेजिंग आदि काम आनेवाली वस्तुएँ ज़हरीले पदार्थों से मुक्त रहेंगी । पैकेजिंग में काम आने वाले उत्पाद बार-बार इस्तेमाल करने योग्य रहेंगे तथा समय व स्थान बर्बाद करने वाली जंक मेल (अनावश्यक मेल) प्रतिबंधित रहेंगी ।

प्रकृति-पर्यटन (प्रकृति का आनंद लेने के लिये होने वाला पर्यटन) को एक बड़ा उद्योग बनाया जायेगा जिससे हमारे लिये अति-आवश्यक राजस्व तो मिलेगा ही, साथ ही स्वास्थ्य के लिये लाभकारी कई काम-धन्धों का भी सृजन होगा, जैसे : पर्यावरण-सुधारक, यात्रायें तथा टूर के काम, गाइड, शिक्षक जो पर्यावरण की विशेषताओं के बारे में बता सकें, कपड़े, पर्यटन के काम आने वाले साजो-सामान, पर्यटकों के लिये किराये के कमरे या घर, पर्यटकों के लिये विभिन्न चीज़ों का निर्माण व उन चीज़ों की बिक्री, होटल, रेस्टोरेण्ट, बार तथा इन सभी चीज़ों की आपूर्ति के लिये आवश्यक खेती, भोजन व पेय का उत्पादन ।

िवषैली खेती तो अब सस्ती भी नहीं रही । इसके विपरीत जैविक या प्राकृतिक खेती सस्ती तो पड़ती ही है, उससे उत्पन्न खाद्य कहीं अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट भी होते हैं और साथ ही इन खाद्य-वस्तुओं का स्वाद बढ़ाने के लिये किसी कृतिम गंध आदि का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता । वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत सारी खेती प्राकृतिक व जैविक ही होगी । हमारे भोजन से, हमारी हवा से और हमारे जल-भंडार से सभी प्रकार के ज़हर मिटा दिये जायेंगे । मधुमक्खियों तथा अन्य सेचनकारी (खेती के लिये आवश्यक) कीट-पतंगों का जीवन नष्ट नहीं होगा । हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के अनुकूल होगा, हमारी खाद्य-श्रृंखला फलेगी-फूलेगी, और फलत: हमारे नागरिक स्वस्थ व संपुष्ट रहेंगे ।

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