वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

न्यूनतम वेतन

न्यूनतम वेतन पर काम करने वाले लोग तो ग़ुलामों से भी सस्ते पड़ते हैं । बड़ी कम्पनियों के मालिकों के लिये ग़ुलामों को खाना खिलाना, कपड़े देना, घर उपलब्ध कराना, काम पर आने-जाने के लिये यातायात (गाड़ी वगैरह) उपलब्ध कराना और उनको सेहतमन्द रखना न्यूनतम वेतन पर काम करने वालों पर होने वाले खर्च से दोगुना अधिक महँगा पड़ जायेगा । आज के विवेकशील करदाता अपने कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देने वाली कम्पनियों का समर्थन सिर्फ़ इसलिये करते हैं (उनके उत्पाद सिर्फ़ इसलिये खरीदते हैं) क्योंकि कर्मचारी मात्र अपने वेतन से अपना जीवनयापन नहीं कर सकते और ऐसे कर्मचारियों के लिये हमारी कल्याणकारी योजनाओं के बिना काम पर जाना ही संभव नहीं हो पाता । अगर ‘वॉलमार्ट’ कम्पनी का मामला लें तो हम ग्राहक श्रीमान् वॉल्टन जी के उन तीन बेटे-बेटियों को ही और भी समृद्ध बनाते रहते हैं जो पहले से ही कई अरब के स्वामी हैं, और जब कि कम्पनी के प्रमुख प्रबन्धक नियमित रूप से अपने कर्मचारियों से कई सौ गुना अधिक पैसे कमा रहे होते हैं । ऐसी लालच तो भयानक रूप से घृणास्पद है !

छोटे व्यापारी, जो हमारे देश की रोज़गार की आवश्यकता के ८५% (पचासी प्रतिशत) की पूर्ति करते हैं ऐसे द्वितीय श्रेणी के कर्मचारियों को २० डॉलर प्रति घंटा नहीं दे सकते जैसे कर्मचारियों को हमारे स्कूल व हमारी आव्रजन नीतियाँ आजकल रोज़गार के बाज़ार में उपलब्ध कराती रहती हैं । कर्मचारियों को अधिक वेतन का हकदार बनने के लिये अपने कौशल व अपनी कार्यकुशलता को बढ़ाना ही पड़ेगा । वैलेण्टाइन संविधान का ‘के-१२’ (भारत में १०+२) स्कूली पाठ्यक्रम छात्रों में निहित वाणिज्य से संबंधित प्रकृति-प्रदत्त प्रतिभा व कौशल का विकास कर के, उनको वास्तविक दुनिया में काम आनेवाले कौशल सिखा कर तथा उनके अपने समुदायों में वास्तविक प्रशिक्षण व काम के अभ्यास के अवसर प्रदान कर के छात्रों के कौशल व कार्यकुशलता को बढ़ाने के इसी लक्ष्य को प्राप्त करता है । वयस्क नागरिक वास्तविक दुनिया में काम आनेवाले कौशल को अनुभवी सेवानिवृत्त लोगों से नि:शुक्क रात्रिकालीन कक्षाओं व सप्ताहान्तों (शनिवार-रविवार) में आयोजित होने वाले नि:शुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सीखेंगे ।

जीवनयापन के लिये समुचित वेतन मिल पाने से लोगों में काम करने व नौकरी बनाये रखने के प्रति रुझान बढ़ता है, कल्याणकारी योजनाओं की कम आवश्यकता पड़ती है, अपराध कम हो जाते हैं, परिवारों में स्थायित्व आता है तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर प्रतियोगिता, उद्यमिता तथा नई खोज को प्रोत्साहन मिलता है । कम्पनी के मालिकों व प्रमुख प्रबन्धकों को अपने वेतन-भत्तों को अपने सबसे कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन-भत्ते के सौ गुना तक ही सीमित रखना होगा । भारत में बिकने वाले उत्पादों का ७५% (पचहत्तर प्रतिशत) भारत में और भारतीय नागरिकों द्वारा ही निर्मित होगा । भारत में किये जाने वाले सभी काम व श्रम का ९५% (पचानवे प्रतिशत) भाग भारतीय नागरिकों द्वारा ही सम्पादित किया जायेगा ।

न्यूनतम वेतन
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न्यूनतम वेतन पर काम करने वाले लोग तो ग़ुलामों से भी सस्ते पड़ते हैं । बड़ी कम्पनियों के मालिकों के लिये ग़ुलामों को खाना खिलाना, कपड़े देना, घर उपलब्ध कराना, काम पर आने-जाने के लिये यातायात (गाड़ी वगैरह) उपलब्ध कराना और उनको सेहतमन्द रखना न्यूनतम वेतन पर काम करने वालों पर होने वाले खर्च से दोगुना अधिक महँगा पड़ जायेगा । आज के विवेकशील करदाता अपने कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देने वाली कम्पनियों का समर्थन सिर्फ़ इसलिये करते हैं (उनके उत्पाद सिर्फ़ इसलिये खरीदते हैं) क्योंकि कर्मचारी मात्र अपने वेतन से अपना जीवनयापन नहीं कर सकते और ऐसे कर्मचारियों के लिये हमारी कल्याणकारी योजनाओं के बिना काम पर जाना ही संभव नहीं हो पाता । अगर ‘वॉलमार्ट’ कम्पनी का मामला लें तो हम ग्राहक श्रीमान् वॉल्टन जी के उन तीन बेटे-बेटियों को ही और भी समृद्ध बनाते रहते हैं जो पहले से ही कई अरब के स्वामी हैं, और जब कि कम्पनी के प्रमुख प्रबन्धक नियमित रूप से अपने कर्मचारियों से कई सौ गुना अधिक पैसे कमा रहे होते हैं । ऐसी लालच तो भयानक रूप से घृणास्पद है !

छोटे व्यापारी, जो हमारे देश की रोज़गार की आवश्यकता के ८५% (पचासी प्रतिशत) की पूर्ति करते हैं ऐसे द्वितीय श्रेणी के कर्मचारियों को २० डॉलर प्रति घंटा नहीं दे सकते जैसे कर्मचारियों को हमारे स्कूल व हमारी आव्रजन नीतियाँ आजकल रोज़गार के बाज़ार में उपलब्ध कराती रहती हैं । कर्मचारियों को अधिक वेतन का हकदार बनने के लिये अपने कौशल व अपनी कार्यकुशलता को बढ़ाना ही पड़ेगा । वैलेण्टाइन संविधान का ‘के-१२’ (भारत में १०+२) स्कूली पाठ्यक्रम छात्रों में निहित वाणिज्य से संबंधित प्रकृति-प्रदत्त प्रतिभा व कौशल का विकास कर के, उनको वास्तविक दुनिया में काम आनेवाले कौशल सिखा कर तथा उनके अपने समुदायों में वास्तविक प्रशिक्षण व काम के अभ्यास के अवसर प्रदान कर के छात्रों के कौशल व कार्यकुशलता को बढ़ाने के इसी लक्ष्य को प्राप्त करता है । वयस्क नागरिक वास्तविक दुनिया में काम आनेवाले कौशल को अनुभवी सेवानिवृत्त लोगों से नि:शुक्क रात्रिकालीन कक्षाओं व सप्ताहान्तों (शनिवार-रविवार) में आयोजित होने वाले नि:शुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सीखेंगे ।

जीवनयापन के लिये समुचित वेतन मिल पाने से लोगों में काम करने व नौकरी बनाये रखने के प्रति रुझान बढ़ता है, कल्याणकारी योजनाओं की कम आवश्यकता पड़ती है, अपराध कम हो जाते हैं, परिवारों में स्थायित्व आता है तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर प्रतियोगिता, उद्यमिता तथा नई खोज को प्रोत्साहन मिलता है । कम्पनी के मालिकों व प्रमुख प्रबन्धकों को अपने वेतन-भत्तों को अपने सबसे कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन-भत्ते के सौ गुना तक ही सीमित रखना होगा । भारत में बिकने वाले उत्पादों का ७५% (पचहत्तर प्रतिशत) भारत में और भारतीय नागरिकों द्वारा ही निर्मित होगा । भारत में किये जाने वाले सभी काम व श्रम का ९५% (पचानवे प्रतिशत) भाग भारतीय नागरिकों द्वारा ही सम्पादित किया जायेगा ।

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न्यूनतम वेतन पर काम करने वाले लोग तो ग़ुलामों से भी सस्ते पड़ते हैं । बड़ी कम्पनियों के मालिकों के लिये ग़ुलामों को खाना खिलाना, कपड़े देना, घर उपलब्ध कराना, काम पर आने-जाने के लिये यातायात (गाड़ी वगैरह) उपलब्ध कराना और उनको सेहतमन्द रखना न्यूनतम वेतन पर काम करने वालों पर होने वाले खर्च से दोगुना अधिक महँगा पड़ जायेगा । आज के विवेकशील करदाता अपने कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देने वाली कम्पनियों का समर्थन सिर्फ़ इसलिये करते हैं (उनके उत्पाद सिर्फ़ इसलिये खरीदते हैं) क्योंकि कर्मचारी मात्र अपने वेतन से अपना जीवनयापन नहीं कर सकते और ऐसे कर्मचारियों के लिये हमारी कल्याणकारी योजनाओं के बिना काम पर जाना ही संभव नहीं हो पाता । अगर ‘वॉलमार्ट’ कम्पनी का मामला लें तो हम ग्राहक श्रीमान् वॉल्टन जी के उन तीन बेटे-बेटियों को ही और भी समृद्ध बनाते रहते हैं जो पहले से ही कई अरब के स्वामी हैं, और जब कि कम्पनी के प्रमुख प्रबन्धक नियमित रूप से अपने कर्मचारियों से कई सौ गुना अधिक पैसे कमा रहे होते हैं । ऐसी लालच तो भयानक रूप से घृणास्पद है !

छोटे व्यापारी, जो हमारे देश की रोज़गार की आवश्यकता के ८५% (पचासी प्रतिशत) की पूर्ति करते हैं ऐसे द्वितीय श्रेणी के कर्मचारियों को २० डॉलर प्रति घंटा नहीं दे सकते जैसे कर्मचारियों को हमारे स्कूल व हमारी आव्रजन नीतियाँ आजकल रोज़गार के बाज़ार में उपलब्ध कराती रहती हैं । कर्मचारियों को अधिक वेतन का हकदार बनने के लिये अपने कौशल व अपनी कार्यकुशलता को बढ़ाना ही पड़ेगा । वैलेण्टाइन संविधान का ‘के-१२’ (भारत में १०+२) स्कूली पाठ्यक्रम छात्रों में निहित वाणिज्य से संबंधित प्रकृति-प्रदत्त प्रतिभा व कौशल का विकास कर के, उनको वास्तविक दुनिया में काम आनेवाले कौशल सिखा कर तथा उनके अपने समुदायों में वास्तविक प्रशिक्षण व काम के अभ्यास के अवसर प्रदान कर के छात्रों के कौशल व कार्यकुशलता को बढ़ाने के इसी लक्ष्य को प्राप्त करता है । वयस्क नागरिक वास्तविक दुनिया में काम आनेवाले कौशल को अनुभवी सेवानिवृत्त लोगों से नि:शुक्क रात्रिकालीन कक्षाओं व सप्ताहान्तों (शनिवार-रविवार) में आयोजित होने वाले नि:शुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सीखेंगे ।

जीवनयापन के लिये समुचित वेतन मिल पाने से लोगों में काम करने व नौकरी बनाये रखने के प्रति रुझान बढ़ता है, कल्याणकारी योजनाओं की कम आवश्यकता पड़ती है, अपराध कम हो जाते हैं, परिवारों में स्थायित्व आता है तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर प्रतियोगिता, उद्यमिता तथा नई खोज को प्रोत्साहन मिलता है । कम्पनी के मालिकों व प्रमुख प्रबन्धकों को अपने वेतन-भत्तों को अपने सबसे कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन-भत्ते के सौ गुना तक ही सीमित रखना होगा । भारत में बिकने वाले उत्पादों का ७५% (पचहत्तर प्रतिशत) भारत में और भारतीय नागरिकों द्वारा ही निर्मित होगा । भारत में किये जाने वाले सभी काम व श्रम का ९५% (पचानवे प्रतिशत) भाग भारतीय नागरिकों द्वारा ही सम्पादित किया जायेगा ।

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