वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

एक बड़ा देशव्यापी समझौता

चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशी हों या स्वयंसेवी सामाजिक-संगठन, सहायतार्थ चंदा उगाहने वाले उपक्रम हों या बड़े-बड़े आयोजन व सभायें, विज्ञापन हों या लोगों को प्रेरित करने के प्रयास, नये भाषण हों या पुराने भाषणों की रिकार्डिंग, जनान्दोलन हों या विरोध-प्रदर्शन : ये सभी हमारी आपस में जुड़ी हुई व उलझी हुई उब अनेक समस्याओं के अनगिनत कारणों का निराकरण करने में नाकाम रहे हैं जिनसे हमारा पूरा तंत्र ग्रस्त हुआ पड़ा है । इसके विपरीत इन प्रयासों ने केवल आपसी झगड़ों को ही बढ़ावा दिया है । हमारे नेतागण हमारी आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि वे राजनीति और राजनीति से प्राप्त होने वाली सत्ता से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं सकते । नेताओं की बड़ी-बड़ी राजनैतिक महत्वकांक्षायें उनके हाथ बाँधे रखती हैं । देश का नेतृत्व कर पाने के लिये जिस नैतिक-शक्ति, जिस दूरदर्शिता, जिस बुद्धिमत्ता, िजस रचनात्मकता, लगन व कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है उन सबका हमारे नेताओं में नितान्त अभाव है ।

जब ये राजनीतिज्ञ लोग हमारी विभिन्न समस्याओं को लेकर पार्टी के स्तर पर और पार्टी के भीतर लड़ने-झगड़ने में लगे हुये थे, वैलेण्टाइन जी समस्याओं के समाधान रचने में लगे हुये थे । समस्याओं का धीरज के साथ अध्ययन करने में, उन्हें समझने में और फिर उसके बाद एक ऐसे नये समाधान की रचना करने में चार दशकों (चालीस बरसों) का समय लगा है जो हम सभी को एक साथ जोड़ सके । ये ऐसे समाधान हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतर चुके हमारे आधारभूत सिद्धान्तों के साथ मेल खाते हुये हमारी समग्र जनता को लिये एक शिक्षाप्रद, विराट व व्यापक समझौते व आम सहमति को आकार दे सकेंगे, और समाज के हर वर्ग को संतुष्ट कर सकेंगे ।

उन्हीं समाधानों को बार-बार आज़माने में समय क्यों बर्बाद किया जाये जो समाधान कई पीढ़ियों से असफल सिद्ध होते चले आये हैं, जब कि हम सब एक बड़े व वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आसानी से एकजुट व लामबंद हो सकते हैं ।

वह लक्ष्य है एक नये एवं व्यावहारिक संविधान को अपने मताधिकार के द्वारा सारे देश में लागू करवाने की शक्ति व अधिकार को प्राप्त करना । एक ऐसा संविधान जिस पर हम सभी की सहमति हो और जिसके द्वारा हम अपने राजनीतिज्ञों को मजबूर सकें कि वे हमारे मनमाफ़िक कार्य करें । इस तरह से हम अपने सभी मिशन तुरन्त पूरे कर सकते हैं, और अन्तत: हमारी दशकों से अधूरी पड़ी आकांक्षायें पूरी हो सकेंगी ।

एक बड़ा देशव्यापी समझौता
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

एक बड़ा देशव्यापी समझौता

चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशी हों या स्वयंसेवी सामाजिक-संगठन, सहायतार्थ चंदा उगाहने वाले उपक्रम हों या बड़े-बड़े आयोजन व सभायें, विज्ञापन हों या लोगों को प्रेरित करने के प्रयास, नये भाषण हों या पुराने भाषणों की रिकार्डिंग, जनान्दोलन हों या विरोध-प्रदर्शन : ये सभी हमारी आपस में जुड़ी हुई व उलझी हुई उब अनेक समस्याओं के अनगिनत कारणों का निराकरण करने में नाकाम रहे हैं जिनसे हमारा पूरा तंत्र ग्रस्त हुआ पड़ा है । इसके विपरीत इन प्रयासों ने केवल आपसी झगड़ों को ही बढ़ावा दिया है । हमारे नेतागण हमारी आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि वे राजनीति और राजनीति से प्राप्त होने वाली सत्ता से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं सकते । नेताओं की बड़ी-बड़ी राजनैतिक महत्वकांक्षायें उनके हाथ बाँधे रखती हैं । देश का नेतृत्व कर पाने के लिये जिस नैतिक-शक्ति, जिस दूरदर्शिता, जिस बुद्धिमत्ता, िजस रचनात्मकता, लगन व कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है उन सबका हमारे नेताओं में नितान्त अभाव है ।

जब ये राजनीतिज्ञ लोग हमारी विभिन्न समस्याओं को लेकर पार्टी के स्तर पर और पार्टी के भीतर लड़ने-झगड़ने में लगे हुये थे, वैलेण्टाइन जी समस्याओं के समाधान रचने में लगे हुये थे । समस्याओं का धीरज के साथ अध्ययन करने में, उन्हें समझने में और फिर उसके बाद एक ऐसे नये समाधान की रचना करने में चार दशकों (चालीस बरसों) का समय लगा है जो हम सभी को एक साथ जोड़ सके । ये ऐसे समाधान हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतर चुके हमारे आधारभूत सिद्धान्तों के साथ मेल खाते हुये हमारी समग्र जनता को लिये एक शिक्षाप्रद, विराट व व्यापक समझौते व आम सहमति को आकार दे सकेंगे, और समाज के हर वर्ग को संतुष्ट कर सकेंगे ।

उन्हीं समाधानों को बार-बार आज़माने में समय क्यों बर्बाद किया जाये जो समाधान कई पीढ़ियों से असफल सिद्ध होते चले आये हैं, जब कि हम सब एक बड़े व वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आसानी से एकजुट व लामबंद हो सकते हैं ।

वह लक्ष्य है एक नये एवं व्यावहारिक संविधान को अपने मताधिकार के द्वारा सारे देश में लागू करवाने की शक्ति व अधिकार को प्राप्त करना । एक ऐसा संविधान जिस पर हम सभी की सहमति हो और जिसके द्वारा हम अपने राजनीतिज्ञों को मजबूर सकें कि वे हमारे मनमाफ़िक कार्य करें । इस तरह से हम अपने सभी मिशन तुरन्त पूरे कर सकते हैं, और अन्तत: हमारी दशकों से अधूरी पड़ी आकांक्षायें पूरी हो सकेंगी ।

एक बड़ा देशव्यापी समझौता
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

एक बड़ा देशव्यापी समझौता

चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशी हों या स्वयंसेवी सामाजिक-संगठन, सहायतार्थ चंदा उगाहने वाले उपक्रम हों या बड़े-बड़े आयोजन व सभायें, विज्ञापन हों या लोगों को प्रेरित करने के प्रयास, नये भाषण हों या पुराने भाषणों की रिकार्डिंग, जनान्दोलन हों या विरोध-प्रदर्शन : ये सभी हमारी आपस में जुड़ी हुई व उलझी हुई उब अनेक समस्याओं के अनगिनत कारणों का निराकरण करने में नाकाम रहे हैं जिनसे हमारा पूरा तंत्र ग्रस्त हुआ पड़ा है । इसके विपरीत इन प्रयासों ने केवल आपसी झगड़ों को ही बढ़ावा दिया है । हमारे नेतागण हमारी आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि वे राजनीति और राजनीति से प्राप्त होने वाली सत्ता से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं सकते । नेताओं की बड़ी-बड़ी राजनैतिक महत्वकांक्षायें उनके हाथ बाँधे रखती हैं । देश का नेतृत्व कर पाने के लिये जिस नैतिक-शक्ति, जिस दूरदर्शिता, जिस बुद्धिमत्ता, िजस रचनात्मकता, लगन व कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है उन सबका हमारे नेताओं में नितान्त अभाव है ।

जब ये राजनीतिज्ञ लोग हमारी विभिन्न समस्याओं को लेकर पार्टी के स्तर पर और पार्टी के भीतर लड़ने-झगड़ने में लगे हुये थे, वैलेण्टाइन जी समस्याओं के समाधान रचने में लगे हुये थे । समस्याओं का धीरज के साथ अध्ययन करने में, उन्हें समझने में और फिर उसके बाद एक ऐसे नये समाधान की रचना करने में चार दशकों (चालीस बरसों) का समय लगा है जो हम सभी को एक साथ जोड़ सके । ये ऐसे समाधान हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतर चुके हमारे आधारभूत सिद्धान्तों के साथ मेल खाते हुये हमारी समग्र जनता को लिये एक शिक्षाप्रद, विराट व व्यापक समझौते व आम सहमति को आकार दे सकेंगे, और समाज के हर वर्ग को संतुष्ट कर सकेंगे ।

उन्हीं समाधानों को बार-बार आज़माने में समय क्यों बर्बाद किया जाये जो समाधान कई पीढ़ियों से असफल सिद्ध होते चले आये हैं, जब कि हम सब एक बड़े व वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आसानी से एकजुट व लामबंद हो सकते हैं ।

वह लक्ष्य है एक नये एवं व्यावहारिक संविधान को अपने मताधिकार के द्वारा सारे देश में लागू करवाने की शक्ति व अधिकार को प्राप्त करना । एक ऐसा संविधान जिस पर हम सभी की सहमति हो और जिसके द्वारा हम अपने राजनीतिज्ञों को मजबूर सकें कि वे हमारे मनमाफ़िक कार्य करें । इस तरह से हम अपने सभी मिशन तुरन्त पूरे कर सकते हैं, और अन्तत: हमारी दशकों से अधूरी पड़ी आकांक्षायें पूरी हो सकेंगी ।

एक बड़ा देशव्यापी समझौता