वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

एकल बैंक

वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत हमारे बैंक सार्वजनिक एकल जन-उपयोगिता बैंक होंगे । ये बैंक दुनिया में भारत द्वारा विश्व में अर्जित आस्था-विश्वास व साख से संबंधित एकाधिपत्य प्रकृति वाले वे सभी अधिकार भारत के आम नागरिकों को हस्तान्तरित कर देंगे जिन पर अभी तक मात्र बैंक मालिकों का ही वर्चस्व है ।

बड़े बैंको को यह अधिकार नहीं रह जायेगा कि वे आम नागरिकों की मेहनत से कमाई जमा पूँजी को या उनकी गिरवी रखी हुई संपत्ति को तथा उनकी निधि को जोखिम भरे बाज़ार के दाँव पर लगा सकें । उनको अब यह अधिकार नहीं रह जायेगा कि वे अर्थव्यवस्था को डाँवाडोल या ध्वस्त कर सकें, रोज़गार के संकट पैदा कर सकें, मनमाने ढंग से भारी-भरकम कर्ज़ बाँट सकें या बड़-बड़े कर्ज़दारों-बकायेदारों के कर्ज़ व बकाये को अपनी मर्ज़ी से माफ़ कर सकें । वैलेण्टाइन संविधान नकदी को ही समाप्त कर देगा, जिससे आर्थिक अपराधी, ठगी करने वाले गिरोह तथा ग़ैरकानूनी प्रवासी किसी भी आर्थिक अपराध को किसी भी सूरत में अंजाम न दे सकेंगे ।

मकानों-भवनों में स्थित कार्यालय के रूप में काम करने वाली सभी बैंक-शाखाओं व सारे ए.टी.एम. के अस्तित्व को समाप्त कर दिया जायेगा जिससे आम नागरिकों व ग्राहकों पर पड़ने वाले सभी खर्चों के भार सहित वे सारे भार भी समाप्त हो जायेंगे जिसे आज तक नागरिक व ग्राहक जाने-अनजाने उठाते आये हैं, जैसे: बैंकों के मकानों-भवनों के लिये होने वाला खर्च का बोझ, ज़मीनों व पार्किंग सुविधाओं पर होने वाला खर्च का बोझ, बैंक में काम आने वाले साजो-सामान पर होने वाला खर्च का भार, बिजली-पानी व कम्प्यूटरों पर होने वाला खर्च का भार, वेतन पर होने वाले खर्च का बोझ, ब्याज-प्रसार का बोझ, उपलब्धता-प्रसार का बोझ, बचत व कर्ज़ पर लिये-दिये जाने वाले सूद का बोझ, ए.टी.एम. के रखरखाव पर होने वाले खर्चों का बोझ तथा दूसरे सभी प्रकार के खातों पर लिये जाने वाले शुल्क-संबंधी बोझ इत्यादि । साथ ही अब आम नागरिकों व ग्राहकों को हमारी सकल-निधि पर मिलने वाले लाभ तक पहुँच भी मिल जायेगी, जो पहुँच अब तक केवल उन लोगों को ही प्राप्त है जो लोग इन बैंको के स्वामी हैं ।

राष्ट्रीय (सार्वजनिक) एकल बैंकों का अस्तित्व भौतिक (किसी मकान या भवन में) न हो कर मात्र ऑनलाइन ही रह जायेगा । नागरिकों को मात्र एक ही क्रेडिट/डेबिट/एक्सेस कार्ड रखने की ज़रूरत रह जायेगी, और सुगमतापूर्वक परिचालित किया जा सकने वाला एक ही खाता होगा । इस खाते का ‘संघीय सरकार-नियन्त्रित बीमा निगम’ (FDIC) के द्वारा बीमा किया जायेगा, ताकि खाताधारकों की जमा-पूँजी हर हाल में सुरक्षित रह सके । खाता व्यक्तिगत हो अथवा व्यापार से संबंधित, तथा खाते में जमा राशि जो भी हो, खाता बीमा के द्वारा सुरक्षित रहेगा । ऑनलाइन लेनदेन पर लगने वाले पेपाल (PayPal) तथा पोर्टल प्रकार के शुल्क का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । सभी प्रकार खरीदारी व बिक्री करने के लिये इंटरनेट ही एक विशाल पोर्टल होगा जिसके लिये सभी नागरिकों को मात्र ५% (पाँच प्रतिशत) का शुल्क देना होगा । इस शुल्क के अलावा कोई और शुल्क नहीं होगा । यह शुल्क “सभी के लिये देय” होगा, यानी सभी को देना होगा ।

(अधिक जानकारी के लिये देखिये: एकल कर)

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वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत हमारे बैंक सार्वजनिक एकल जन-उपयोगिता बैंक होंगे । ये बैंक दुनिया में भारत द्वारा विश्व में अर्जित आस्था-विश्वास व साख से संबंधित एकाधिपत्य प्रकृति वाले वे सभी अधिकार भारत के आम नागरिकों को हस्तान्तरित कर देंगे जिन पर अभी तक मात्र बैंक मालिकों का ही वर्चस्व है ।

बड़े बैंको को यह अधिकार नहीं रह जायेगा कि वे आम नागरिकों की मेहनत से कमाई जमा पूँजी को या उनकी गिरवी रखी हुई संपत्ति को तथा उनकी निधि को जोखिम भरे बाज़ार के दाँव पर लगा सकें । उनको अब यह अधिकार नहीं रह जायेगा कि वे अर्थव्यवस्था को डाँवाडोल या ध्वस्त कर सकें, रोज़गार के संकट पैदा कर सकें, मनमाने ढंग से भारी-भरकम कर्ज़ बाँट सकें या बड़-बड़े कर्ज़दारों-बकायेदारों के कर्ज़ व बकाये को अपनी मर्ज़ी से माफ़ कर सकें । वैलेण्टाइन संविधान नकदी को ही समाप्त कर देगा, जिससे आर्थिक अपराधी, ठगी करने वाले गिरोह तथा ग़ैरकानूनी प्रवासी किसी भी आर्थिक अपराध को किसी भी सूरत में अंजाम न दे सकेंगे ।

मकानों-भवनों में स्थित कार्यालय के रूप में काम करने वाली सभी बैंक-शाखाओं व सारे ए.टी.एम. के अस्तित्व को समाप्त कर दिया जायेगा जिससे आम नागरिकों व ग्राहकों पर पड़ने वाले सभी खर्चों के भार सहित वे सारे भार भी समाप्त हो जायेंगे जिसे आज तक नागरिक व ग्राहक जाने-अनजाने उठाते आये हैं, जैसे: बैंकों के मकानों-भवनों के लिये होने वाला खर्च का बोझ, ज़मीनों व पार्किंग सुविधाओं पर होने वाला खर्च का बोझ, बैंक में काम आने वाले साजो-सामान पर होने वाला खर्च का भार, बिजली-पानी व कम्प्यूटरों पर होने वाला खर्च का भार, वेतन पर होने वाले खर्च का बोझ, ब्याज-प्रसार का बोझ, उपलब्धता-प्रसार का बोझ, बचत व कर्ज़ पर लिये-दिये जाने वाले सूद का बोझ, ए.टी.एम. के रखरखाव पर होने वाले खर्चों का बोझ तथा दूसरे सभी प्रकार के खातों पर लिये जाने वाले शुल्क-संबंधी बोझ इत्यादि । साथ ही अब आम नागरिकों व ग्राहकों को हमारी सकल-निधि पर मिलने वाले लाभ तक पहुँच भी मिल जायेगी, जो पहुँच अब तक केवल उन लोगों को ही प्राप्त है जो लोग इन बैंको के स्वामी हैं ।

राष्ट्रीय (सार्वजनिक) एकल बैंकों का अस्तित्व भौतिक (किसी मकान या भवन में) न हो कर मात्र ऑनलाइन ही रह जायेगा । नागरिकों को मात्र एक ही क्रेडिट/डेबिट/एक्सेस कार्ड रखने की ज़रूरत रह जायेगी, और सुगमतापूर्वक परिचालित किया जा सकने वाला एक ही खाता होगा । इस खाते का ‘संघीय सरकार-नियन्त्रित बीमा निगम’ (FDIC) के द्वारा बीमा किया जायेगा, ताकि खाताधारकों की जमा-पूँजी हर हाल में सुरक्षित रह सके । खाता व्यक्तिगत हो अथवा व्यापार से संबंधित, तथा खाते में जमा राशि जो भी हो, खाता बीमा के द्वारा सुरक्षित रहेगा । ऑनलाइन लेनदेन पर लगने वाले पेपाल (PayPal) तथा पोर्टल प्रकार के शुल्क का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । सभी प्रकार खरीदारी व बिक्री करने के लिये इंटरनेट ही एक विशाल पोर्टल होगा जिसके लिये सभी नागरिकों को मात्र ५% (पाँच प्रतिशत) का शुल्क देना होगा । इस शुल्क के अलावा कोई और शुल्क नहीं होगा । यह शुल्क “सभी के लिये देय” होगा, यानी सभी को देना होगा ।

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वैलेण्टाइन संविधान के अन्तर्गत हमारे बैंक सार्वजनिक एकल जन-उपयोगिता बैंक होंगे । ये बैंक दुनिया में भारत द्वारा विश्व में अर्जित आस्था-विश्वास व साख से संबंधित एकाधिपत्य प्रकृति वाले वे सभी अधिकार भारत के आम नागरिकों को हस्तान्तरित कर देंगे जिन पर अभी तक मात्र बैंक मालिकों का ही वर्चस्व है ।

बड़े बैंको को यह अधिकार नहीं रह जायेगा कि वे आम नागरिकों की मेहनत से कमाई जमा पूँजी को या उनकी गिरवी रखी हुई संपत्ति को तथा उनकी निधि को जोखिम भरे बाज़ार के दाँव पर लगा सकें । उनको अब यह अधिकार नहीं रह जायेगा कि वे अर्थव्यवस्था को डाँवाडोल या ध्वस्त कर सकें, रोज़गार के संकट पैदा कर सकें, मनमाने ढंग से भारी-भरकम कर्ज़ बाँट सकें या बड़-बड़े कर्ज़दारों-बकायेदारों के कर्ज़ व बकाये को अपनी मर्ज़ी से माफ़ कर सकें । वैलेण्टाइन संविधान नकदी को ही समाप्त कर देगा, जिससे आर्थिक अपराधी, ठगी करने वाले गिरोह तथा ग़ैरकानूनी प्रवासी किसी भी आर्थिक अपराध को किसी भी सूरत में अंजाम न दे सकेंगे ।

मकानों-भवनों में स्थित कार्यालय के रूप में काम करने वाली सभी बैंक-शाखाओं व सारे ए.टी.एम. के अस्तित्व को समाप्त कर दिया जायेगा जिससे आम नागरिकों व ग्राहकों पर पड़ने वाले सभी खर्चों के भार सहित वे सारे भार भी समाप्त हो जायेंगे जिसे आज तक नागरिक व ग्राहक जाने-अनजाने उठाते आये हैं, जैसे: बैंकों के मकानों-भवनों के लिये होने वाला खर्च का बोझ, ज़मीनों व पार्किंग सुविधाओं पर होने वाला खर्च का बोझ, बैंक में काम आने वाले साजो-सामान पर होने वाला खर्च का भार, बिजली-पानी व कम्प्यूटरों पर होने वाला खर्च का भार, वेतन पर होने वाले खर्च का बोझ, ब्याज-प्रसार का बोझ, उपलब्धता-प्रसार का बोझ, बचत व कर्ज़ पर लिये-दिये जाने वाले सूद का बोझ, ए.टी.एम. के रखरखाव पर होने वाले खर्चों का बोझ तथा दूसरे सभी प्रकार के खातों पर लिये जाने वाले शुल्क-संबंधी बोझ इत्यादि । साथ ही अब आम नागरिकों व ग्राहकों को हमारी सकल-निधि पर मिलने वाले लाभ तक पहुँच भी मिल जायेगी, जो पहुँच अब तक केवल उन लोगों को ही प्राप्त है जो लोग इन बैंको के स्वामी हैं ।

राष्ट्रीय (सार्वजनिक) एकल बैंकों का अस्तित्व भौतिक (किसी मकान या भवन में) न हो कर मात्र ऑनलाइन ही रह जायेगा । नागरिकों को मात्र एक ही क्रेडिट/डेबिट/एक्सेस कार्ड रखने की ज़रूरत रह जायेगी, और सुगमतापूर्वक परिचालित किया जा सकने वाला एक ही खाता होगा । इस खाते का ‘संघीय सरकार-नियन्त्रित बीमा निगम’ (FDIC) के द्वारा बीमा किया जायेगा, ताकि खाताधारकों की जमा-पूँजी हर हाल में सुरक्षित रह सके । खाता व्यक्तिगत हो अथवा व्यापार से संबंधित, तथा खाते में जमा राशि जो भी हो, खाता बीमा के द्वारा सुरक्षित रहेगा । ऑनलाइन लेनदेन पर लगने वाले पेपाल (PayPal) तथा पोर्टल प्रकार के शुल्क का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । सभी प्रकार खरीदारी व बिक्री करने के लिये इंटरनेट ही एक विशाल पोर्टल होगा जिसके लिये सभी नागरिकों को मात्र ५% (पाँच प्रतिशत) का शुल्क देना होगा । इस शुल्क के अलावा कोई और शुल्क नहीं होगा । यह शुल्क “सभी के लिये देय” होगा, यानी सभी को देना होगा ।

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