वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

एकल कर (टैक्स)

वैलेण्टाइन संविधान हर तरह के कर (टैक्स) को समाप्त कर के केवल एक ही कर लगायेगा । यह टैक्स ५% (पाँच प्रतिशत) होगा जो हर खरीदार और विक्रेता पर प्रत्येक लेनदेन में लगेगा । सभी को यह कर अदा करना होगा: हर धर्म के लोगों को, अलाभकारी (फ़ायदा न कमाने वाले) संस्थानों-संगठनों को, लाभकारी (फ़ायदा कमाने वाले) संस्थानों-संगठनों को, हर तरह के व्यापारियों-व्यवसायियों को, उपभोक्ताओं को, बच्चों को, थोक विक्रेताओं को, फुटकर विक्रेताओं को, बिचौलोियों को, दलालों को, शेयर व्यापारियों को और वस्तु विनिमय करने वालों को; अर्थात सभी को इसका भुगतान करना होगा । इसके चलते किसी भी दूसरे प्रकार का टैक्स या शुल्क (फ़ीस) कोई भी सरकार या कोई भी सरकारी विभाग नहीं वसूलेगा ।

इन छोटे (५%) करों के कारण टैक्स सब्सिडी जैसी चीज़ अनावश्यक हो जाने के कारण समाप्त हो जायेगी, तथा हर व्यक्ति और हर कंपनी का कर-भार उसकी स्थित के अनुकूल हो जायेगा, जिससे सराकर में व्याप्त भ्रष्टाचार भी समाप्त होगा । यह ५% टैक्स हर खरीदार तथा विक्रेता के बैंक खाते से लेनदेन होते ही काट लिया जायेगा, और फिर हमारे वैलेण्टाइन संविधान के पारदर्शी बजट में निर्देशित नीतियों के अनुसार तत्काल प्रभाव से इस रकम को सभी सरकारी विभागों में बराबर आवंटित कर दिया जायेगा । ऐसे ऐप्स उपलब्ध होंगे जिनके माध्यम से हम हमारे द्वारा दिये गये टैक्स-राजस्व का उपयोग कैसे किया गया इसकी जानकारी हमें तुरंत मिल सकेगी; और इन ऐप्स के माध्यम से हम सरकार के बजट पर तथा सरकारी खर्च पर नज़र रखते हुये सरकारी विभागों तथा सरकारी ठेकेदारों के कामकाज व खर्च का सही आकलन भी कर पायेंगे ।

अब कोई आयकर, वेतन पर किसी प्रकार का कर, संपत्ति-कर, संपदा कर आदि नहीं रह जायेगा; कोई टैक्स रिटर्न नहीं भरना पड़ेगा तथा किसी प्रकार की वित्तीय गोपनीयता का अस्तित्व नहीं रहेगा । टैक्स चोरी करना, टैक्स बचाना या कर भुगतान के साथ कोई धाँधली कर पाना तो अब संभव ही नहीं होगा । टैक्स चुकाने में, उसके लिये योजना बनाने में, उसकी तैयारी करने में, टैक्स भरने की प्रक्रिया में, दफ़्तरों की भागदौड़ करने में तथा हिसाब-किताब आदि रखने में व्यापारी तथा आम नागरिक अभी जो समय व पैसा बर्बाद करते हैं, और साथ ही इसके कारण जो मानसिक तनाव भी वे झेलते हैं अब उन सबसे मुक्ति मिल जायेगी । अब यह सारी ऊर्जा तथा समय पैसा कमाने में लगाया जा सकेगा । हमारे द्वारा बताया गया लेनदेन पर लगने वाला यह एकल टैक्स (५%) उन व्यापारियों को तमाम अनावश्यक बंधंनों से मुक्त कर देगा जो व्यापारी अपने व्यापार से रोज़गार का सृजन करते हैं, ताकि व्यापारी व व्यवसायी ज्यादा व्यापार-व्यवसाय कर के अधिक रोज़गार पैदा कर सकें । अब अधिक लोग अपने निजी मकानों के मालिक बन सकेंगे क्योंकि फ़िलहाल भवन का स्वामी होने के लिये जितनी रकम खर्च करनी पड़ती है उस का २५% तो केवल संपत्ति-कर के रूप में ही होता है । हमारी इस व्यवस्था से वित्तीय वर्ष के अंत में कर्ज़ के एक मुश्त बड़े व अंतिम भुगतानों की परम्परा भी अपने आप ही समाप्त हो जायेगी । कर्ज़ के इन एक मुश्त बड़े व अंतिम भुगतानों के कारण आज न जाने कितनी महत्वपूर्ण सरकारी योजनायें अधर में लटकी रह जाती हैं ।

एकल कर (टैक्स)
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

एकल कर (टैक्स)

वैलेण्टाइन संविधान हर तरह के कर (टैक्स) को समाप्त कर के केवल एक ही कर लगायेगा । यह टैक्स ५% (पाँच प्रतिशत) होगा जो हर खरीदार और विक्रेता पर प्रत्येक लेनदेन में लगेगा । सभी को यह कर अदा करना होगा: हर धर्म के लोगों को, अलाभकारी (फ़ायदा न कमाने वाले) संस्थानों-संगठनों को, लाभकारी (फ़ायदा कमाने वाले) संस्थानों-संगठनों को, हर तरह के व्यापारियों-व्यवसायियों को, उपभोक्ताओं को, बच्चों को, थोक विक्रेताओं को, फुटकर विक्रेताओं को, बिचौलोियों को, दलालों को, शेयर व्यापारियों को और वस्तु विनिमय करने वालों को; अर्थात सभी को इसका भुगतान करना होगा । इसके चलते किसी भी दूसरे प्रकार का टैक्स या शुल्क (फ़ीस) कोई भी सरकार या कोई भी सरकारी विभाग नहीं वसूलेगा ।

इन छोटे (५%) करों के कारण टैक्स सब्सिडी जैसी चीज़ अनावश्यक हो जाने के कारण समाप्त हो जायेगी, तथा हर व्यक्ति और हर कंपनी का कर-भार उसकी स्थित के अनुकूल हो जायेगा, जिससे सराकर में व्याप्त भ्रष्टाचार भी समाप्त होगा । यह ५% टैक्स हर खरीदार तथा विक्रेता के बैंक खाते से लेनदेन होते ही काट लिया जायेगा, और फिर हमारे वैलेण्टाइन संविधान के पारदर्शी बजट में निर्देशित नीतियों के अनुसार तत्काल प्रभाव से इस रकम को सभी सरकारी विभागों में बराबर आवंटित कर दिया जायेगा । ऐसे ऐप्स उपलब्ध होंगे जिनके माध्यम से हम हमारे द्वारा दिये गये टैक्स-राजस्व का उपयोग कैसे किया गया इसकी जानकारी हमें तुरंत मिल सकेगी; और इन ऐप्स के माध्यम से हम सरकार के बजट पर तथा सरकारी खर्च पर नज़र रखते हुये सरकारी विभागों तथा सरकारी ठेकेदारों के कामकाज व खर्च का सही आकलन भी कर पायेंगे ।

अब कोई आयकर, वेतन पर किसी प्रकार का कर, संपत्ति-कर, संपदा कर आदि नहीं रह जायेगा; कोई टैक्स रिटर्न नहीं भरना पड़ेगा तथा किसी प्रकार की वित्तीय गोपनीयता का अस्तित्व नहीं रहेगा । टैक्स चोरी करना, टैक्स बचाना या कर भुगतान के साथ कोई धाँधली कर पाना तो अब संभव ही नहीं होगा । टैक्स चुकाने में, उसके लिये योजना बनाने में, उसकी तैयारी करने में, टैक्स भरने की प्रक्रिया में, दफ़्तरों की भागदौड़ करने में तथा हिसाब-किताब आदि रखने में व्यापारी तथा आम नागरिक अभी जो समय व पैसा बर्बाद करते हैं, और साथ ही इसके कारण जो मानसिक तनाव भी वे झेलते हैं अब उन सबसे मुक्ति मिल जायेगी । अब यह सारी ऊर्जा तथा समय पैसा कमाने में लगाया जा सकेगा । हमारे द्वारा बताया गया लेनदेन पर लगने वाला यह एकल टैक्स (५%) उन व्यापारियों को तमाम अनावश्यक बंधंनों से मुक्त कर देगा जो व्यापारी अपने व्यापार से रोज़गार का सृजन करते हैं, ताकि व्यापारी व व्यवसायी ज्यादा व्यापार-व्यवसाय कर के अधिक रोज़गार पैदा कर सकें । अब अधिक लोग अपने निजी मकानों के मालिक बन सकेंगे क्योंकि फ़िलहाल भवन का स्वामी होने के लिये जितनी रकम खर्च करनी पड़ती है उस का २५% तो केवल संपत्ति-कर के रूप में ही होता है । हमारी इस व्यवस्था से वित्तीय वर्ष के अंत में कर्ज़ के एक मुश्त बड़े व अंतिम भुगतानों की परम्परा भी अपने आप ही समाप्त हो जायेगी । कर्ज़ के इन एक मुश्त बड़े व अंतिम भुगतानों के कारण आज न जाने कितनी महत्वपूर्ण सरकारी योजनायें अधर में लटकी रह जाती हैं ।

एकल कर (टैक्स)
वेलेंटाइन संविधान

के लिये
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एकल कर (टैक्स)

वैलेण्टाइन संविधान हर तरह के कर (टैक्स) को समाप्त कर के केवल एक ही कर लगायेगा । यह टैक्स ५% (पाँच प्रतिशत) होगा जो हर खरीदार और विक्रेता पर प्रत्येक लेनदेन में लगेगा । सभी को यह कर अदा करना होगा: हर धर्म के लोगों को, अलाभकारी (फ़ायदा न कमाने वाले) संस्थानों-संगठनों को, लाभकारी (फ़ायदा कमाने वाले) संस्थानों-संगठनों को, हर तरह के व्यापारियों-व्यवसायियों को, उपभोक्ताओं को, बच्चों को, थोक विक्रेताओं को, फुटकर विक्रेताओं को, बिचौलोियों को, दलालों को, शेयर व्यापारियों को और वस्तु विनिमय करने वालों को; अर्थात सभी को इसका भुगतान करना होगा । इसके चलते किसी भी दूसरे प्रकार का टैक्स या शुल्क (फ़ीस) कोई भी सरकार या कोई भी सरकारी विभाग नहीं वसूलेगा ।

इन छोटे (५%) करों के कारण टैक्स सब्सिडी जैसी चीज़ अनावश्यक हो जाने के कारण समाप्त हो जायेगी, तथा हर व्यक्ति और हर कंपनी का कर-भार उसकी स्थित के अनुकूल हो जायेगा, जिससे सराकर में व्याप्त भ्रष्टाचार भी समाप्त होगा । यह ५% टैक्स हर खरीदार तथा विक्रेता के बैंक खाते से लेनदेन होते ही काट लिया जायेगा, और फिर हमारे वैलेण्टाइन संविधान के पारदर्शी बजट में निर्देशित नीतियों के अनुसार तत्काल प्रभाव से इस रकम को सभी सरकारी विभागों में बराबर आवंटित कर दिया जायेगा । ऐसे ऐप्स उपलब्ध होंगे जिनके माध्यम से हम हमारे द्वारा दिये गये टैक्स-राजस्व का उपयोग कैसे किया गया इसकी जानकारी हमें तुरंत मिल सकेगी; और इन ऐप्स के माध्यम से हम सरकार के बजट पर तथा सरकारी खर्च पर नज़र रखते हुये सरकारी विभागों तथा सरकारी ठेकेदारों के कामकाज व खर्च का सही आकलन भी कर पायेंगे ।

अब कोई आयकर, वेतन पर किसी प्रकार का कर, संपत्ति-कर, संपदा कर आदि नहीं रह जायेगा; कोई टैक्स रिटर्न नहीं भरना पड़ेगा तथा किसी प्रकार की वित्तीय गोपनीयता का अस्तित्व नहीं रहेगा । टैक्स चोरी करना, टैक्स बचाना या कर भुगतान के साथ कोई धाँधली कर पाना तो अब संभव ही नहीं होगा । टैक्स चुकाने में, उसके लिये योजना बनाने में, उसकी तैयारी करने में, टैक्स भरने की प्रक्रिया में, दफ़्तरों की भागदौड़ करने में तथा हिसाब-किताब आदि रखने में व्यापारी तथा आम नागरिक अभी जो समय व पैसा बर्बाद करते हैं, और साथ ही इसके कारण जो मानसिक तनाव भी वे झेलते हैं अब उन सबसे मुक्ति मिल जायेगी । अब यह सारी ऊर्जा तथा समय पैसा कमाने में लगाया जा सकेगा । हमारे द्वारा बताया गया लेनदेन पर लगने वाला यह एकल टैक्स (५%) उन व्यापारियों को तमाम अनावश्यक बंधंनों से मुक्त कर देगा जो व्यापारी अपने व्यापार से रोज़गार का सृजन करते हैं, ताकि व्यापारी व व्यवसायी ज्यादा व्यापार-व्यवसाय कर के अधिक रोज़गार पैदा कर सकें । अब अधिक लोग अपने निजी मकानों के मालिक बन सकेंगे क्योंकि फ़िलहाल भवन का स्वामी होने के लिये जितनी रकम खर्च करनी पड़ती है उस का २५% तो केवल संपत्ति-कर के रूप में ही होता है । हमारी इस व्यवस्था से वित्तीय वर्ष के अंत में कर्ज़ के एक मुश्त बड़े व अंतिम भुगतानों की परम्परा भी अपने आप ही समाप्त हो जायेगी । कर्ज़ के इन एक मुश्त बड़े व अंतिम भुगतानों के कारण आज न जाने कितनी महत्वपूर्ण सरकारी योजनायें अधर में लटकी रह जाती हैं ।

एकल कर (टैक्स)