वेलेंटाइन संविधान

के लिये
भारत

इंटरनेट पर बाज़ार

सार्वजनिक सेवायें तथा पूँजीवाद स्थापित आर्थिक परम्परायें हैं । वैलेण्टाइन संविधान के माध्यम से इन दोनों को मिला कर एक पूँजीवादी किन्तु सार्वजनिक उपयोगिता वाले बाज़ार का सृजन होगा, जहाँ सभी को व्यापार-स्पर्धा करने के लिये बराबरी का मौका मिलेगा । यह बाज़ार पूरी तरह से माँग तथा आपूर्ति के सिद्धान्त पर आधारित रहेगा । इस मुक्त बाज़ार में सरकार आम लोगों में निहित व्यापार-प्रतिभा व व्यापार बुद्धि, व अन्य प्रकार के काम करने की दक्षता को मूर्त रूप देने के लिये, उसे अमली जामा पहनाने के लिये प्रोत्साहन व मदद देगी । व्यापार-कार्य के लिये सबको समान अवसर प्रदान करने वाला व नैतिकता के सिद्धान्तों पर खरा उतरने वाला स्पर्धापूर्ण वातारण मिलने पर सर्वाधिक योग्य व प्रतिभावान लोग ही उच्च पदों तक पहुँच पायेंगे बिचौलियों, संरक्षणवादी पहरेदारों व एकाधिपत्य (मोनोपोली) जमाने वाली कंपनियों के हस्तक्षेप से मुक्त हो कर सभी आम जन अपने माल तथा अपनी सेवाओं की बिक्री ऑनलाइन कर सकेंगे; और हर प्रकार के लेनदेन पर उल्लिखित ५% अनिवार्य कर के अालावा और कोई कर भी नहीं लगेगा । फ़िल्टर्स के साथ आनेवाला विज्ञापन-रहित ऑनलाइन सर्च सभी विक्रेताओं और खरीदारों को एक दूसरे से आसानी से जोड़ देगा जिससे व्यापार तेज़ व सुगम हो जायेगा । रॉयल्टी आधारित व्यवस्था के द्वारा कॉण्टेण्ट-निर्माताओं को उनका पारिश्रमिक दिया जायेगा, तथा कॉण्टेण्ट-निर्माता उपभोक्ताओं को सप्ताह के सातों दिन चौबीस घंटे कॉण्टेण्ट उपलब्ध करायेंगे ।

हमारी रोज़गार-संबंधी आवश्यकताओं के ८५% की पूर्ति तो छोटे व मझोले उद्योगों, उद्यमों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों व व्यवसायियों के द्वारा ही होती है । “हमारी अर्थव्यवस्था” की दशा हमारे छोटे व्यापारियों तथा व्यवसायियों की दशा पर ही निर्भर रहती है । एकाधिपत्य जमाने वाली बहुराष्ट्रीय विशाल कंपनियों से हमारी अर्थव्यवस्था की दशा का निर्धारण नहीं होता है । जब हमारे छोटे-छोटे व्यापारी फल-फूल रहे हों, तो समझ लीजिये कि समाज का मध्य-वर्ग और हमारा प्रजातंत्र भी फल-फूल रहा है । मुक्त, मुफ़्त व बाज़ार तक सीधी पहुँच वाली वैलेण्टाइन संविधान की यह इंटरनेट-आधारित अर्थव्यवस्था नये-नये छोटे उद्योगों का सृजन करेगी तथा नवीन प्रकार के उत्पाद बाज़ार में लायेगी । आनेवाले समय के अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के काबिल बनने के लिये, तथा प्रकृति के साथ तादात्म्य व संतुलन रखते हुये सुखी व स्वस्थ जीवन जीने के लिये हमें ऐसे ही छोटे उद्यमों व नवीन उत्पादों की आवश्यकता है ।

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सार्वजनिक सेवायें तथा पूँजीवाद स्थापित आर्थिक परम्परायें हैं । वैलेण्टाइन संविधान के माध्यम से इन दोनों को मिला कर एक पूँजीवादी किन्तु सार्वजनिक उपयोगिता वाले बाज़ार का सृजन होगा, जहाँ सभी को व्यापार-स्पर्धा करने के लिये बराबरी का मौका मिलेगा । यह बाज़ार पूरी तरह से माँग तथा आपूर्ति के सिद्धान्त पर आधारित रहेगा । इस मुक्त बाज़ार में सरकार आम लोगों में निहित व्यापार-प्रतिभा व व्यापार बुद्धि, व अन्य प्रकार के काम करने की दक्षता को मूर्त रूप देने के लिये, उसे अमली जामा पहनाने के लिये प्रोत्साहन व मदद देगी । व्यापार-कार्य के लिये सबको समान अवसर प्रदान करने वाला व नैतिकता के सिद्धान्तों पर खरा उतरने वाला स्पर्धापूर्ण वातारण मिलने पर सर्वाधिक योग्य व प्रतिभावान लोग ही उच्च पदों तक पहुँच पायेंगे बिचौलियों, संरक्षणवादी पहरेदारों व एकाधिपत्य (मोनोपोली) जमाने वाली कंपनियों के हस्तक्षेप से मुक्त हो कर सभी आम जन अपने माल तथा अपनी सेवाओं की बिक्री ऑनलाइन कर सकेंगे; और हर प्रकार के लेनदेन पर उल्लिखित ५% अनिवार्य कर के अालावा और कोई कर भी नहीं लगेगा । फ़िल्टर्स के साथ आनेवाला विज्ञापन-रहित ऑनलाइन सर्च सभी विक्रेताओं और खरीदारों को एक दूसरे से आसानी से जोड़ देगा जिससे व्यापार तेज़ व सुगम हो जायेगा । रॉयल्टी आधारित व्यवस्था के द्वारा कॉण्टेण्ट-निर्माताओं को उनका पारिश्रमिक दिया जायेगा, तथा कॉण्टेण्ट-निर्माता उपभोक्ताओं को सप्ताह के सातों दिन चौबीस घंटे कॉण्टेण्ट उपलब्ध करायेंगे ।

हमारी रोज़गार-संबंधी आवश्यकताओं के ८५% की पूर्ति तो छोटे व मझोले उद्योगों, उद्यमों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों व व्यवसायियों के द्वारा ही होती है । “हमारी अर्थव्यवस्था” की दशा हमारे छोटे व्यापारियों तथा व्यवसायियों की दशा पर ही निर्भर रहती है । एकाधिपत्य जमाने वाली बहुराष्ट्रीय विशाल कंपनियों से हमारी अर्थव्यवस्था की दशा का निर्धारण नहीं होता है । जब हमारे छोटे-छोटे व्यापारी फल-फूल रहे हों, तो समझ लीजिये कि समाज का मध्य-वर्ग और हमारा प्रजातंत्र भी फल-फूल रहा है । मुक्त, मुफ़्त व बाज़ार तक सीधी पहुँच वाली वैलेण्टाइन संविधान की यह इंटरनेट-आधारित अर्थव्यवस्था नये-नये छोटे उद्योगों का सृजन करेगी तथा नवीन प्रकार के उत्पाद बाज़ार में लायेगी । आनेवाले समय के अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के काबिल बनने के लिये, तथा प्रकृति के साथ तादात्म्य व संतुलन रखते हुये सुखी व स्वस्थ जीवन जीने के लिये हमें ऐसे ही छोटे उद्यमों व नवीन उत्पादों की आवश्यकता है ।

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सार्वजनिक सेवायें तथा पूँजीवाद स्थापित आर्थिक परम्परायें हैं । वैलेण्टाइन संविधान के माध्यम से इन दोनों को मिला कर एक पूँजीवादी किन्तु सार्वजनिक उपयोगिता वाले बाज़ार का सृजन होगा, जहाँ सभी को व्यापार-स्पर्धा करने के लिये बराबरी का मौका मिलेगा । यह बाज़ार पूरी तरह से माँग तथा आपूर्ति के सिद्धान्त पर आधारित रहेगा । इस मुक्त बाज़ार में सरकार आम लोगों में निहित व्यापार-प्रतिभा व व्यापार बुद्धि, व अन्य प्रकार के काम करने की दक्षता को मूर्त रूप देने के लिये, उसे अमली जामा पहनाने के लिये प्रोत्साहन व मदद देगी । व्यापार-कार्य के लिये सबको समान अवसर प्रदान करने वाला व नैतिकता के सिद्धान्तों पर खरा उतरने वाला स्पर्धापूर्ण वातारण मिलने पर सर्वाधिक योग्य व प्रतिभावान लोग ही उच्च पदों तक पहुँच पायेंगे बिचौलियों, संरक्षणवादी पहरेदारों व एकाधिपत्य (मोनोपोली) जमाने वाली कंपनियों के हस्तक्षेप से मुक्त हो कर सभी आम जन अपने माल तथा अपनी सेवाओं की बिक्री ऑनलाइन कर सकेंगे; और हर प्रकार के लेनदेन पर उल्लिखित ५% अनिवार्य कर के अालावा और कोई कर भी नहीं लगेगा । फ़िल्टर्स के साथ आनेवाला विज्ञापन-रहित ऑनलाइन सर्च सभी विक्रेताओं और खरीदारों को एक दूसरे से आसानी से जोड़ देगा जिससे व्यापार तेज़ व सुगम हो जायेगा । रॉयल्टी आधारित व्यवस्था के द्वारा कॉण्टेण्ट-निर्माताओं को उनका पारिश्रमिक दिया जायेगा, तथा कॉण्टेण्ट-निर्माता उपभोक्ताओं को सप्ताह के सातों दिन चौबीस घंटे कॉण्टेण्ट उपलब्ध करायेंगे ।

हमारी रोज़गार-संबंधी आवश्यकताओं के ८५% की पूर्ति तो छोटे व मझोले उद्योगों, उद्यमों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों व व्यवसायियों के द्वारा ही होती है । “हमारी अर्थव्यवस्था” की दशा हमारे छोटे व्यापारियों तथा व्यवसायियों की दशा पर ही निर्भर रहती है । एकाधिपत्य जमाने वाली बहुराष्ट्रीय विशाल कंपनियों से हमारी अर्थव्यवस्था की दशा का निर्धारण नहीं होता है । जब हमारे छोटे-छोटे व्यापारी फल-फूल रहे हों, तो समझ लीजिये कि समाज का मध्य-वर्ग और हमारा प्रजातंत्र भी फल-फूल रहा है । मुक्त, मुफ़्त व बाज़ार तक सीधी पहुँच वाली वैलेण्टाइन संविधान की यह इंटरनेट-आधारित अर्थव्यवस्था नये-नये छोटे उद्योगों का सृजन करेगी तथा नवीन प्रकार के उत्पाद बाज़ार में लायेगी । आनेवाले समय के अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के काबिल बनने के लिये, तथा प्रकृति के साथ तादात्म्य व संतुलन रखते हुये सुखी व स्वस्थ जीवन जीने के लिये हमें ऐसे ही छोटे उद्यमों व नवीन उत्पादों की आवश्यकता है ।

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